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________________ ८८ पञ्चतन्त्र पर इस तरह बोलते हुए वह पूरी बात भी न कह सका और नीचे आ गिरा । नगरवासियों ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले । इसलिए मैं कहती हूँ कि " इस लोक में हितैषी मित्रों की जो बात नहीं मानता वह लकड़ी के ऊपर से गिरे हुए कछुए की तरह नष्ट हो जाता है । " संकट आने के पहले उपाय करने वाला, और संकट आने के समयानुसार उसके उपाय करने वाला, इन दोनों को सुख मिलता है । पर भाग्य पर भरोसा रखने वाले का नाश होता है ।" टिटहरे ने कहा--"यह कैसे ?" टिटिहरी कहने लगी तीन मछलियों की कथा किसी तालाब में अनागत विधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य नाम के तीन मच्छ रहते थे। एक बार उस तरफ से जाते हुए मछली मारों ने उस तालाब को देख कर कहा, "मछलियों से भरे इस तालाब को हमने कभी भी इसके पहिले नहीं देखा था । आज तो हमें अपना भोजन मिला। अभी तो संध्या हो गई है । इसलिए सवेरे हम यहां जरूर आयेंगे ।" बिजली गिरने के समान उनकी यह बात सुनकर अनागत विधाता ने सब मछलियों को बुलाकर यह कहा, "अरे, क्या आप लोगों ने मच्छीमारों की बात सुनी ? इसलिए आप सब किसी निकट तालाब में चले जांय । कहा है कि के “कमजोर मनुष्यों को बलवान शत्रुओं से दूर भागना चाहिए, या किले में चले जाना चाहिए। इसके सिवा उनकी कोई गति नहीं है । जरूर ही सवेरे मछली मार आकर मछलियों को मारेंगे, यह मेरा विश्वास है । इसलिए क्षण भर भी आप का यहां रहना ठीक नहीं । कहा है कि "जो मनुष्य सुख के साथ दूसरी जगह जा सकता है ऐसा विद्वान
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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