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________________ १६. व्यवहार नय ६५४ ३. व्यवहार नय सामान्य का लक्षण मे उपरोक्त प्रकार एकत्व दर्शाना भी युक्त नही है। पृथक पदार्थो मे या जो सर्वदा साथ रहने वाले या किये कराये जाने वाले नहीं है उनमे, 'यह उसका है, या इसका वह कर्ता या भोक्ता है, ऐसा कहना बनता नही । भले ही लौकिक व्यवहार में इस प्रकार के उपचारो का नित्य प्रयोग करने मे आता हो पर वह यथार्थ नहीं है क्योंकि वस्तुभूत नही है। इस प्रकार व्यवहार नय के निन्म तीन लक्षण है: १. एक अखण्ड पदार्थ मे भेद का उपचार करना। २. अनेक पृथक पदार्थो मे अभेद का उपचार करना । ३. लौकिक रूढि के प्रयोगों को सत्य मानना । इन्ही लक्षणो की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित उदाहरण देखिये। १. लक्षण नं १ (अभेद में भेद. वस्तु व्यवहरतीति १ न. च. गद्य। प. २५. "भेदोपचाराभ्यां व्यवहार ।” अर्थ- भेद व उपचार द्वारा वस्तु मे जो भेद डालती है, सो व्यवहार है। २ प ध. । २। ५२२ . “व्यवहरण व्यवहारः स्यादिति शब्दार्थो न परमार्थः । स यथा गुणगणिनोरिह सदभेदे भेदकरणां स्यात् । ५२२।" अर्थ-व्यवहरण अर्थात भेद करने को व्यवहार कहते हैं। यह भेद शाब्दिक ही होता है परमार्थ य वस्तुभूत नहीं। वह
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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