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________________ ३. वस्तू व ज्ञान सम्बन्ध १३ ४. परोक्ष ज्ञान का ज्ञानपन है पर आकार सामान्य की अपेक्षा कोई अन्तर नही इसलिये दोनों ही सच्चे है । यहा ज्ञान दो प्रकार का सिद्ध हो गया-एक प्रतिबिम्बरूप और एक चित्रणरूप । प्रतिबिम्बरूप तो पदार्थ के प्रत्यक्षद्वारा ही होना संभव है, इसीलिये उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते है । परन्तु क्योंकि उपरोक्त प्रकार चित्रित ज्ञान शब्दों आदि के आधार पर से, अन्य पदार्थ को समझाने के अनुमान के आधार पर उत्पन्न हुआ है, इसलिये इसे परोक्ष ज्ञान कहते हैं। वस्तु का विश्लेषण करके बताये व जाने बिना परोक्ष ज्ञान होना असम्भव है। क्योंकि जो पदार्थ गुरुओं को आगम मे बताना अभीष्ट है वह प्रत्यक्ष नही है, अतः विश्लेषण करके वचनों द्वारा ही बताने वाले मार्ग का आश्रय लेना पड़ा। यदि प्रत्यक्ष दिखाया जा सका होता तो इस मार्ग को अपनाने की कोई आवश्यकता न थी। इसलिये आगम ज्ञान को परोक्ष ज्ञान कहा जाता है । प्रत्यक्ष व परोक्ष ज्ञान मे महान् अतर है । प्रत्यक्ष ज्ञान मे स्वाभाविक ग्रहण होता है और परोक्ष ज्ञान में कृत्रिम । स्वाभाविक ग्रहण मे गलती होनी असम्भव है पर कृत्रिम ग्रहण मे उसकी बहुत सम्भावना है। इसलिये परोक्ष ज्ञान के सबध मे बहुत सावधानी बर्तने की आवश्यकता है । कदाचित ऐसा हो जाया करता है कि वस्तु का परोक्ष ज्ञान भी हो नही पाता और व्यक्ति मिथ्या अभिमान कर बैठता है कि मुझे वह ज्ञान है । दूसरे के लिये तो नही, पर अपने लिये अवश्य वह अहकार घातक हो जाता है । इसलिये स्वहितार्थ इस परोक्ष ज्ञान के सबध मे कुछ और बाते भी विचारणीय व धारणीय है । सर्व प्रमुख बात इसके सबध मे यह है, कि ज्ञान चाहे प्रत्यक्ष हो या परोक्ष, उसी समय ज्ञान नाम पा सकता है जब कि वह वस्तु की किचित अनुरूपता को प्राप्त हो चुका हो । सो इन दोनों ज्ञानों में
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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