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________________ ३. वस्तु व ज्ञान सम्बन्ध ४२ ४. परोक्ष ज्ञान का ज्ञानपना साक्षात् नही हो पाया उसके लिये भी क्या एक ही शब्द कहना पर्याप्त हो सकेगा ? जैसे अग्नि तो आपकी जानी देखी वस्तु है, अतः इसको ! बताने के लिये तो 'अग्नि' यह एक शब्द ही पर्याप्त है, परन्तु जैसा कि पहले बताया जा चुका है उस अमेरिका के फल के संबंध में भी यदि मै एक शब्द का संकेत आपको दूं तो क्या पर्याप्त होगा ? भले ही उसके लिये पर्याप्त हो जाए जिसने कि उसे देखा और चखा है, पर आपके लिये तो ऐसा न हो सकेगा। तो आपको उसका परिचय कैसे कराये, जबकि वह फल मेरे पास नही । विश्लेषण के अतिरिक्त और मार्ग ही क्या है? विश्लेषण द्वारा उसे खडित करके अनेको अंगों में विभाजित किया गया । बड़ापना व छोटापना, कटोरपना व नरमपना, रंग व रूप, सुगन्ध व दुर्गन्ध, स्वाद, बीज, शकल सूरत, स्वास्थ्य को लाभदायक हानिकारक इत्यादि । इन तथा अन्य भी अनेकों अगो में विभाजित करके एक-एक अंग सबंधी वह दृष्टात सामने लाये गये जो आपके जाने देखे है, तथा जो लगभग उन उन अंगो का कुछ प्रतिनिधित्व कर सकते है । उन-उन दृष्टातो पर से पृथक-पृथक उन उन अंगों को आपके ज्ञान में उतारा गया। फिर आपको इन सब अंगों को ज्ञान में ही एकत्रित करने के लिये कहा गया । बस उस फल का धुधला सा आकार या रूप रेखा आपके हृदय पट पर अकित हो गई, जो यद्यपि अत्यन्त स्पष्ट तो नही पर इतनी स्पष्ट अवश्य है, कि वह फल कदाचित जीवन में देखने का अवसर मिले तो तुरन्त उसे पहिचान जाओ कि यही वह फल है । 1 ४. परोक्ष ज्ञान इस पर से जाना जा सकता है कि आपके ज्ञान पंट पर खिची यह रूप रेखाये उस फल के अनुरूप ही है । यदि ऐसा न हुआ होता अर्थात् यह किसी अन्य पदार्थ संतरे आदि का ज्ञानपना के अनुरूप हुई होती तो, आप कभी भी उस फल को पहिचान न सके होते । यद्यपि आपका यह ज्ञान उस - फल के प्रतिबिम्बरूप नहीं है पर चित्रणरूप अवश्य है । प्रतिबिम्ब और चित्रण मे यद्यपि विशदता व स्पष्टता की अपेक्षा महान अन्तर
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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