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________________ ३ वस्तु व ज्ञान सम्बन्ध ४४ ४. परोक्ष ज्ञान का ज्ञानपना प्रत्यक्ष ज्ञान तो सहज ही वस्तु के अनुरूप हो जाता है, क्योंकि वह तो वस्तु का प्रतिबिम्ब ही है, और प्रतिबिम्ब सर्वथा अनुरूप होता ही है। पर परोक्ष ज्ञान मे वस्तु के अनुरूप होने में कुछ बाधाये है, वही य जाननी अभीष्ट है। ___ भले ही विश्लेषण द्वारा अपने प्रयोजन की सिद्धि के अर्थ वस्तु को खडित कर लिया गया हो पर वास्तव मे वस्तु खडित नही है । जैसे कि यदि उष्णता को पृथक निकाल लिया जाय तो न तो उष्णता नाम की कोई वस्तु रह पायेगी और न अग्नि ही अपना सत्व सुरक्षित रख सकेगी। गुण व पर्याप द्रव्य के अंग हैं', इनको द्रव्य से पृथक् नही किया जा सकता। वस्तु सर्व अंगों का समुदायरूप ही है। और इसलिये तदनुसार ज्ञान भी उन अंगों का समुदायरूप ही होना चाहिये। जैसे वस्तु उन सबका अखंड एक पिन्ड है, उसी प्रकार ज्ञान में ग्रहण किये गये सर्व पृथक पृथक् भावों या अगों का एक पिन्डरूप अखंड ज्ञान हुए बिना केवल उन अगो का पृथक पृथक ज्ञान, ज्ञान नाम पा नहीं सकता। क्योंकि उस प्रकार की पृथक पृथक कोई वस्तु लोक में जब है ही नही तो उस ज्ञान को किसके अनुरूप कहोगे । वास्तव मे ऐसा पृथक पृथक अगों के ज्ञान का आधार केवल शब्द है, वस्तु नही। इस प्रकार के खडित या शाब्दिक ज्ञान को परोक्ष ज्ञान नहीं कहते, वह तो वास्तव मे मिथ्या ज्ञान है, अज्ञान है, अन्धकार मे लिखे कुछ शब्द मात्र है। ऐसा ज्ञान जीवन मे सरलता न ला सकेगा, और वस्तु रहस्य से सर्वथा शून्य यह ज्ञान केवल अहकार व अभिमान का पोषण करता हुआ इसमें वही पक्षपात का विष घोल देगा। अत. भाई ! यदि परोक्ष ज्ञान ही करना है तो कुछ अपनी बुद्धि पर जोर डाल कर उसे एक अद्वैत व अखंड रूप देने का प्रयत्न करे। इस परोक्ष ज्ञान के मार्ग मे यह सर्वथा प्रमुख बात है, इसके अभाव में सब कुछ खर, विषाणवत् है। इसी बात का स्पष्टीकरण कल किया जायेगा। आज़ के प्रकरण में कुछ- शब्दों के लक्षण करने मे आये उनको
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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