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________________ १८. निश्चय नय ६०३ ३. निश्चय नय सामान्य का लक्षण (अर्थ:-जिस प्रकार एक सत् को जिस किस प्रकार से दो रूप करना व्यवहार नय का लक्षण है, उसी प्रकार उस व्यवहार नय से विपरीत अर्थात एक सत् को दो रूप न करना निश्चय नय का लक्षण है। ७. का.अ.।३११-३१२१प जयचन्द "अभेद धर्म को प्रधानता से निश्चय का विषय कहते है।" लक्षण नं २ के उदाहरण जैसे कि निम्न उदाहरणो मे जीव तथा उसके गुण पर्यायो को एकमेक करके दर्शाया है। १ स सा । मू । २७७ आत्मा खल मम् ज्ञानात्मा मे दर्शन चारित्र च । आत्मा प्रत्याख्यानं आत्मा मे सवरो योग. २७७ ।" (अर्था.-निश्चय कर मेरा आत्मा ही ज्ञान है, मेरा आत्मा ही दर्शन व चारित्र है। मेरा आत्मा ही प्रत्याख्यान है और मेरा आत्मा ही सवर और योग है, ऐसा निश्चय नय कहता है । २.पं. का । ता. वृ ।२७।५७।१ शुद्धनिश्चयनयेनामूर्त (जीव)धर्मा धर्माकाशकालद्रव्याणि चामूर्तीनि।" अर्थः-शुद्ध निश्चय नय से जीव भी अमूर्त है और धर्म अधर्म आकाश व काल ये चारो भी अमूर्त है। ३.प का. ता वृ ।२७।६० "निश्चयेन केवलज्ञानदर्शनरूपशुद्धो पयोगे न युक्त त्वादुपयोग विशेषतो भवति ।"
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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