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________________ 1 ६०२ अर्थ - (अभेद व अनुपचार के द्वारा वस्तु का जो निश्चय कराता है सो निश्चय नय है | ) १८. निश्चय नय ३ निश्चय नय सामान्य का लक्षण २. नय चक्र गद्य पृ. २५ " निश्चयोऽभेद विषयः ।" ( अ - निश्चय अभेद विषयक है ।) ३ नय चक्र गद्य ॥५३१ “निश्चयन्यस्तूपनयरहितोऽ भेदानुपचारैकलक्षणमर्थ निश्चिनोति ।" ( अर्थ - निश्चय नय तो उपनय रहित है क्योकि वह तो अनुपचार रूप एक अभेद लक्षण वाले अर्थ का निश्चय कराता है ।) तप्तायं पिण्डवत्तन्मयत्वाच्च ४. वृ. द्र. स. । टी । २।२१ " तत्काले निश्चय । (अर्थ:- उस समय तप्त लोहपिण्डवत तन्मय रूप होने के कारण निश्चय है । अर्थात जिस प्रकार तप्त लोह पिण्ड अग्नि के साथ तन्मय हो जाता है उसी प्रकार अपने गुणव पर्यायो के साथ तन्मय हुआ द्रव्य निश्चय नय का विषय है | ) ५. त. अनु. ।पू.।२६ “अभिन्नकर्तृ कर्मादि विषयो निश्चयो नय ।.. २९ । ( अर्थ - अभिन्न कर्ता कर्मादि विषयक निश्चय नय है ।) (अनघ 1१1१०२ १०८ ) ६. प. ध. पू. ६१४ “लक्षणमेकस्य सतो यथा कथचिद्यथा द्विधा करणम् । व्यवहारस्य तथा स्यात्तदितरथा निश्चयस्य I पुनः । ६१४।”
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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