SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 630
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___६०४ ३. निश्चय नय सामान्य १८ निश्चय नय का लक्षण अर्थ-निश्चय नय से केवल ज्ञान दर्शन रूप शुद्धोपयोग से युक्त् या तन्मय होने के कारण जीव उपयोग विश पण वाला है अर्थात उपयोग लक्षण वाला है। ३ लक्षण नं. ३ (स्वाश्रित भाव निश्चय है) -- - - १ स सा ।पा। २७२ 'अत्माश्रितो निश्चयनयः पराश्रितो व्यवहार नय । (नि सा। ता वृ।१५६) (अर्थः-- पराश्रित भाव व्यवहार है और स्वाश्रित भाव निश्चय है।) २. स. सा. या ।५६ निश्चय नय स्तु द्रव्याश्रितत्वात्केवलस्य जीवस्य स्वाभाविक भावमवलम्ब्योप्लवमान परभाव परस्य सर्वमेव प्रतियेधयति ।" (अर्थ.-- निश्चय नय तो द्रव्याश्रित होने के कारण केवल जीव के स्वाभाविक भावों को आश्रय करके उत्पन्न होता है । और पर के सर्व ही पर भावो का प्रतिषेध करता है।) ३. मो. मा. प्रा७।१७।३।३६६।१ "निश्चय नय' तिन (भावनि) कौ यथावत निरूपण करै है, काहूं कौ काहूविषै न मिलावे है। (अर्थात एक हो द्रव्य के भाव को उस ही स्वरूप निरूपण करना सो निश्चय नय है)" लक्षण नं ३ के कुछ उदाहरण जैसे कि निम्न उद्घारणो मे जीव के सर्व ही शुद्ध या अशुद्ध अपने भाव निश्चय नय के विषय बना कर दर्शाये गये है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy