SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 573
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७ पर्यायार्थिक नय नय की अपेक्षा द्रव्य स्वय अपने कारण से या अपनी उस समय की योग्यता से ही उत्पन्न होता है, उसे दूसरे निमित्त या उपादान कारण की आवश्यकता नही | ५४७ १ पर्यायार्थिक नय सामान्य का लक्षण द्रव्यार्थिक की तरफ तो शुद्ध अद्वैत ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक की तरफ शुद्ध एकत्व ग्राही शुद्ध पर्यायार्थिक नय दोनों ही कारण कार्य भाव को अवकाश नही, क्योंकि दोनों में ही निविकल्प तत्व का ग्रहण है, निर्विकल्पता मे द्वैत का होना विरूद्ध है । कार्य कारण भाव रूप द्वैत को अशुद्ध द्रव्यार्थिक का विषय बनाया जा सकता है, पर उपरोक्त दोनो शुद्ध नयों का नही । - परन्तु लक्षण नं ४ अनेकान्त वाद में पक्षपात को अत्यत निपेधा गया है । अत इस प्रकार का एकत्व ग्रहण उसी समय सम्यकता को प्राप्त हो सकता है जब कि अन्तरङ्ग ज्ञान कोष मे उस के साथ रहने वाला द्वैत भी पड़ा हो। भले उस समय के उपयोग या विचारणा या कथन विशेष मे उस को प्रवेश की आज्ञा न मिले परन्तु लव्ध रूप से उन्तरग में उसकी स्वीकृति अवश्य हो रही है, जैसे कि पहिले 'मुख्य गौण व्यवस्था' नाम के दस्वे अध्याय में स्पष्ट किया जा चुका है । अत यहा द्रव्यार्थिक के विपय भूत द्वैत या अद्वैत की गौणता है उस का अभाव नही । द्रव्य को गौण करके पर्याय का मुख्य रूप से कथन करने वाली दृष्टि को पर्यायार्थिक नय कहते है । द्रव्य को अस्वीकार करके या उसका सर्वथा निषेध करने वाली एकान्त दृष्टि पर्यायार्थिक नही पर्यायार्थिक भास है, जैसे जन साधारण के द्वारा मनुष्य को जीव कहा जाना । जन्म से पहिले भी यह कुछ था और मरण के पश्चात भी कुछ होगा इस बात की स्वीकृति का वहां सर्वथा अभाव है । क्षण क्षण होने वाली पर्यायो को मान कर पर्याय के आश्रय भूत द्रव्य का सर्वथा निषेध करना पर्यायार्थिक नय नही नया भास है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy