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________________ १७ पर्यायार्थिक नय ५४८ १ पर्यायार्थिक नय सामान्य का लक्षण लक्षण नं०५- यद्यपि उत्पन्न और विनष्ट होने वाली पर्याय है द्रव्य नही परन्तु जिस दृष्टि मे उस पर्याय के अतिरिक्त अन्य की सत्ता ही दीखती नही उस मे तो उस पर्याय का विनाश होने पर सत्ता का ही विनाश हो जाना स्वभाविक है । जैसे कि नित्य कहने में आता है कि मनुष्य जन्मा और मर गया, जीव उत्पन्न हुए और विनष्ट हो गए, एटम बौम्ब से असख्यात प्राणियो का सहार हो जाता है । अत इस दृष्टि मे द्रव्य ही उत्पन्न ध्वंसी है । उपरोक्त प्रकार पर्यायार्थिक नय के निम्न प्रकार पांच मुख्य लक्षण किये जा सकते हैं -- १. पर्याय ही है प्रयोजन जिसका सो पर्यायार्थिक नय है । २. निर्विशेष चतुष्टय में किसी प्रकार भी गुण-गुणी आदि द्वित्व या द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अनेकता सम्भव नहीं। ३. क्षण स्थायी विशेष एक सत्ता मे कर्ता कर्म या कारण कार्य आदि भावो को अवकाश नही। ४. द्रव्य को गौण करके पर्याय को ही मुख्य रूपेण ग्रहण करना पर्यायार्थिक नय है। ५. द्रव्य को ही उत्पन्न ध्वसी या क्षणिक मानना पर्यायार्थिक दृष्टि है। पर्यायार्थिक नय सम्बन्धी उदाहरणो के लिये देखिये आगे द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक नय समन्वय । अब इन लक्षणों की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित लक्षण भी उद्धृत करता हूं।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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