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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५१५ १३ उत्पाद व्यय सापेक्ष सत्ता ग्राहक अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय तात्पर्य यह कि जो वस्तु नित्य है वही अनित्य भीहै और जो अनित्यहै वही नित्य भीहै। इस प्रकार वस्तुको सत्ता नित्यानित्यात्मक है, अर्थात उत्पाद व्यय ध्रौव्य से युक्त त्रयात्मकहै । उत्पाद व्यय से निरपेक्ष सत् 'सत्' नहीं है, उत्पाद व्यय सापेक्ष ही सत् है । इसलिये पूर्व नय का विषय तभी सम्यक हो सकता है जब कि वह इस अपने दूसरे अग के साथ मैत्री करके वर्ते । उत्पाद व्यय सापेक्ष सत्ता ग्राहक नय वस्त कि सत्ता मे उपरोक्त प्रकार त्रयात्मकता देखता है । ऐसा भी नहींहै कि उत्पादिक इन तीनो मे कोई समय भेद हो।जिस समय नवीन पर्याय का उत्पाद है उसी समय पूर्व पर्याय का व्यय है और उसी समय स्वरुप या सत्ता सामान्य से वह ध्रव भी है। जिस प्रकार कि जिस समय घट पर्याय की अपेक्षा विनाश होताहै उसी समय कपाल पर्याय की अपेक्षा उत्पाद देखा जाताहै और उसी समय मिट्टी की सामान्य सत्ता रुप से वह ध्रुव भीहै ही। इन तीनो मे समय भेद नहीहै और फिर भी यह विरोध को प्राप्त नहीं होते। यह दृष्टि की ही कोई विचित्रताहै। इस प्रकार उत्पाद व्यय से विशिष्ट वस्तु की ध्रुव सत्ता को दर्शाना इस नय का लक्षणहै। एक अखण्ड सत् मे तीनपना उत्पन्न करने के कारण इसका अन्तर्भाव शास्त्रीय नयो के व्यवहार नय मे होता है। अब इसी की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धारण देखिये । १ वृ. न च. १९५ "उत्पादव्ययविमिश्रा सत्तां गृहीत्वाभणति तृतयत्वम् । द्रव्यस्यैकसमये य. सहि अशुद्धो द्वितीय ।१९५।" अर्थ -उत्पाद व्यय से मिश्रित सत् को ग्रहण करके जो द्रव्य को ... एक समय में ही तीन पना बताता है, वह ही दूसरा
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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