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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५१४ १३ उत्पाद व्यय सापेक्ष सत्ता ग्राहक अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय द्रव्यार्थिक है। अत: 'उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय' ऐसा इसका नाम सार्थक है यही इस नय का कारण है। उत्पत्ति व विनाश पाते रहते भी वस्तु का सामान्य स्वभाव कभी भी उत्पत्ति व विनाश पाता नही । वह त्रिकाली ध्रुव है। ऐसी परिवर्तन शील वस्तु मे भी उसकी नित्य सत्ता को ही ग्रहण करना इस नय का प्रयोजन है । 'काल' की अपेक्षा वस्तु का विचार करते हुए प्रकृत नय युगल १३ उत्पाद व्यय सापेक्ष के प्रथम शुद्ध अंग ने अर्थात् निरपेक्ष सत्ता सत्ता ग्राहक अशुध्द ग्राहक नय ने वस्तु की एक सामान्य नित्यता द्रव्यार्थिक नय का परिचय दिया । यहा विचारना यह है कि क्या वस्तु सर्वथा नित्य है ? वास्तव मे कूटस्थ नित्य कोई भी वस्तु अपनी सत्ता की सिद्धि नही कर सकती है, क्योकि परिणमन के अभाव मे वह स्वय किसी प्रकार भी कार्यकारी सिद्ध नहीं हो सकती, और अर्थ क्रिया से शून्य वस्तु असत् है । कार्य कारण भाव की सिद्धि भी तब ही हो सकती है जब कि वस्तु को परिण मन शील माना जाये । तथा प्रत्यक्ष द्वारा भी वस्तु परिणमन शील देखी जा रही है। इस प्रकार आगम युक्ति व अनुभव तीनो से ही वस्तु परिणमनशील सिद्ध होती है । अतः सर्वथा नित्य मानना मोत्पादक है। वस्तु मे नित्यता है अवश्य, क्योंकि यदि वह न हो तो परिणमन करने पर वस्तु ही बदलकर अन्य रुप बन बन बैठे, अर्थात चेतन बदलकर जड बन बैठे, मनुष्य बदल कर घट बन बैठे, परन्तु ऐसा होना असम्भवहै। जिस प्रकार से बालक युवा व वृद्ध इन सर्व ही परिवर्तन शील अवस्थाओ मे मनुष्यत्व सामान्य वह का वह ही रहता है, इसी प्रकार अपनी परिवर्तनशील,सभी पर्यायों मे त्रिकाली द्रव्यसामान्य वह का वह ही रहता है । यही . उसकी नित्यता' है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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