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________________ १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५१३ १२ १ वृ न च.।१९२ “उत्पाद व्ययौ गौणौ उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कृत्वा यो हि गृहणाति केवलां सत्ताम् । भण्यते स शुद्धनयः इह सत्ताग्राहकः समये ।१९२।” अर्थ - उत्पाद व्यय को गौण करके जो केवल सत्ता को ग्रहण करता है, उसे ही आगम में सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहा गया है । २. आ प. ।७। पु ७० " उत्पादव्यय गौणत्वेन, सत्ताग्राहकः शुद्ध द्रव्यार्थिको यथा द्रव्यं नित्यं " - अर्थ – उत्पाद व्यय गौण सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय ऐसा है, जैसे द्रव्य को नित्य कहना । स्वर्ण की शकले कड़ा कुण्डल आदि रूप से बदल जाने पर भी स्वर्ण तो स्वर्ण ही रहा । बाल युवा वृद्धादि रूप से बदल जाने पर भी मनुष्य तो मनुष्य ही रहा । इसी प्रकार मनुष्य तिर्यं चादि अनेको पर्याय रूप से परिवर्तन करने वाला जीव तो जीव ही रहा । इस प्रकार उत्पाद व्यय को न देखकर केवल वस्तु की नित्य सत्ता को देखना इस नय का उदाहरण है । यह सत्ता ही उसमें होने वाली अवस्थाओं का मूल कारण है, जिसे न्याय वैशेषिक लोग समवायी कारण कहा करते है । क्योंकि कार्य से पूर्व समयवर्ती पदार्थ को कारण कहा जाता है | 1 क्योकि उत्पाद व्यय को मुख्य रूप से ग्रहण नही करता इसलिये उत्पाद व्यय निरपेक्ष है । केवल सत्ता की नित्यता को स्वीकार करने के कारण सत्ता ग्राहक है । निर्विकल्प ग्रहण होने के कारण शुद्ध है । और सामान्य द्रव्य को विषय करने के कारण
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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