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________________ ४३६ -- अर्थ - व्यञ्जन अर्थात शब्द गत वर्णों के भेद से अर्थ का, और गौ आदि अर्थ के भेद से व्यञ्जन या शब्द का भेद करने वाला एवभूत नय है । अर्थात जिस प्रकार घट शब्द चेष्टा विशेष को दर्शाता है । तब उसका वाच्य अर्थ भी उस चेष्टा विशेष वाला ही होना चाहिये । १५. शब्दादि तीन नय १०. एवभूत नय का लक्षण २• अनुयोगद्वार सूत्न १४५ "वजण अत्थ तदुभय एवभूओ विसेसेइ ।” अर्थ - व्यञ्जन और अर्थ अर्थात वाचक और वाच्य यह दोनो मे ही एवभूत विशेषता सहित होने चाहिये, ऐसा एव भूत नय वताता है। (आ० वि० १७५८ ) ३. तत्वार्थाधिगमभाप्य ।१।३५ " व्यञ्जनार्थयोरेवभूत ।" अर्थ ---व्यञ्जन और अर्थ दोनो ही एवभूत है | ४. ध. पु । पृ १८० " वाचकगत वर्णभेदेनार्थस्य गवाद्यर्थभेदेन गवादिशब्दस्य च भेदक. एवभूत ।' ।”. अर्थः-- जो शब्दगत वर्णो के भेद से अर्थ का और गाय आदि अर्थ के भेद से गो आदि शब्द का भेदक है वह एवभूत नय है । ( नय० वि० श्ल० | ९४ ) ( प्र० क० मा० |प ०६८० ) २. लक्षण नं २. ( क्रिया परिणत पदार्थ ही शब्द का वाच्य है) -- १ स सि । १।३३।५४२ "येनात्मना भूतस्तेनैवाध्यवसाययतीति एवभूत. । स्वाभिप्रेतक्रियापरिणतिक्षणे एव स शब्दो युक्तो
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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