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________________ १५. शब्दादि तीन नय ४३७ १०. एवभूत नय का - लक्षण नान्यदेति । यदैवेन्दति तदेवेन्द्रो नाभिषेचको न पूजक इति । यदैव गच्छति तदैव गौर्न स्थितो न शायित इति ।" अर्थ ---जो वस्तु जिस पर्याय को प्राप्त हुई है उसी रूप निश्चय कराने वाले नय को एवभूत कहते है । आशय यह है कि जिस शब्द का जो वाच्य है उस रूप क्रिया के परिणमन के समय ही उस शब्द का प्रयोग करना युक्त है अन्य समय मे नही । जब आज्ञा व ऐश्वर्य वाला हो तब ही इन्द्र है । भगवान का अभिषेक करने वाला नहीं और न पूजा करने वाला ही । जब गमन करती हो तभी गाय है। (रा वा ।१।३३।११।६६।५) (श्ल वा.।१।३३।७५) (प्र क. मा ।पृ. २०६) (स. त. टी पृ ३१४) २ ध ।पु १ । ६०१५ “तत. पदमेकमेकार्थस्य वाचकमित्यध्यवसायः एवभूतनय एतस्मिन्नये एको गोशब्दो नानार्थे न वर्तते एकस्यैकस्वभावस्य बहुषुवृत्तिविरोधात् ।” अर्थ-अत एक पद एक ही अर्थ का वाचक होता है। इस प्रकार विषय करने वाले नय को एवंभूत नय कहते है। इस की दृष्टि मे एक 'गो' शब्द नाना अर्थो मे नही रहता है, क्योकि एक स्वभाव वाले एक पद का अनेक अर्थो मे रहना विरुद्ध है। (ध ।पु । पृ १८०।७) (रा वा. १४१४२।२६१।१७) ३ स म०।२८।३१५१३ एवभूत पुनरेवंभाषते । यस्मिन्नर्थे शब्दो व्युत्पाद्यते स व्युत्पत्तिनिमित्तमर्थो यदैव
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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