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________________ १५ शब्दादि तीन नय ४३५ १०. एवभूत नय का लक्षण तात्पर्य यह कि इस नय का स्वरूप ही इतना सूक्ष्म है, ऐसा यहां शब्दो द्वारा दर्शाया गया । जिन शब्दो व वाक्यो द्वारा यह स्वरूप दर्शाया गया है वे शब्द स्वय एवभूत के विपय भले न हो पर समभिरूढ नय के विपय अवश्य है । अपना स्वरूप दर्शाने के लिये अपनी लक्षण भृत क्रिया मे ही प्रवृत्ति करना आवश्यक नहीं । शब्द व वाक्य व्यवहार हर विषय मे लागू होने का व्यवहार प्रचलित है। इस प्रकार एवभूत नय के हम निम्न ४ लक्षण कर,सकते है१. वाचक शब्द के अनुसार उस का वाच्य ओर वाच्य पदार्थ के अनुसार उसका वाचक शब्द होना चाहिये । २ उस उस क्रिया से परिणत पदार्थ ही उस क्यिा रूप शब्द का वाच्य हो । ३ ज्ञेय विशेषण के ज्ञान से परिणत आत्मा का नाम उस ज्ञेय रूप ही होना चाहिये। ४ भिन्न भिन्न वर्गों का, भिन्न भिन्न पदो का व भिन्न भिन्न शब्दो का समास करके पदो का अभवा सयुक्त शब्दो का अथवा वाक्यो का निर्माण नहीं किया जा सकता। अब इन्ही लक्षणो की पुष्टी व अभ्यास के अर्थ कुछ उध्दरण देखिये । १. लक्षण न १ (शब्द के अनुसार अर्थ और अर्थ के अनुसार शब्द) - १. विरोपावरकभाप्य गा १४३ विजणमत्थेगेत्य न वजणेणोनय विसेसेः । नह घटसद्द चेप्टावया तहा त पिनगव ।"
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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