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________________ ३६६ ५. व्यभिचार का अर्थ इसलिये एकवचन के स्थान पर द्विवचन का कथन करने से सख्या व्यभिचार है । १५. शब्दादि तीन नय (ii) 'नक्षत्र शतभिषजः' अर्थात शतभिषज नक्षत्र है। यहां पर नक्षत्र शब्द एकवचनान्त और शतभिषज शब्द बहुवचनान्त है । इसलिये एकवचन के स्थान पर बहुवचन का कथन करने से संख्याव्यभिचार है । (iii) 'गोदौ ग्राम' अर्थात गायो को देने वाला ग्राम है। यहां पर 'गोद' शब्द द्विवचनान्त और ग्राम शब्द एकवचनान्त है । इसलिये द्विवचन के स्थान पर एकवचन का कथन करने से सख्या व्यभिवार है । (iv) 'पुनर्वसू पंचतारका' अर्थात पुनर्वसू पाच तारे हैं । यहा पर पुनर्वसू शब्द द्विवचनान्त और पंचतारका शब्द बहुवचनान्त है । इसलिये द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का कथन करने से सख्या व्यभिचार है । (v) 'आम्रा. वनम्' अर्थात आमो के वृक्ष वन हैं। यहां पर आम्र बब्द बहुवचनान्त और वन शब्द एकवचनान्त है इसलिये बहुवचन के स्थान पर एकवचन का कथन करने से संख्याव्यभिचार है । (vi) 'देवमनुष्याः उभौराशी' अर्थात देव और मनुष्य ये दो राशि हैं । यहां पर देवमनुष्य शब्द बहुनचनान्त और राशि शब्द द्विवचनान्त है । इसलिये बहुवचन के स्थान पर द्विवचन का कथन करने से सख्याव्यभिचार है " ( रा० वा० 1१1३३||६८1१० ), (स० सि० १|३३|५१७ ), (क) पा०|०१ पृ. ३३६), (ध. | पुεपृ१७७)
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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