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________________ १५. शब्दादि तीन नय ३६८ ५ व्यभिचार का अर्थ (iii) 'विणा आतोद्यम्' अर्थात वीणा वाजा आतोद्य कहा जाता है । यहां पर वीणा शब्द स्त्रीलिंगी और आतोद्य शब्द नपुसकलिगी है । इसलिये स्त्रीलिंग के स्थान पर नपुंसक लिंग का कथन करने से लिग व्याभिचार है । (iv) ' आयुधं शक्ति : अर्थात शक्ति एक आयुद्ध (हथियार) है । यहा पर आयुद्ध शब्द नपुंसक लिंगी और शक्ति शब्द स्त्री लिगी है । इसलिये नपुसकलिंग के स्थान पर स्त्रीलिंग का कथन करने से लिग व्यभिचार है । (v) 'पटोवस्त्रम्' अर्थात पट वस्त्र है । यहा पर पट शब्द पुल्लिंगी और वस्त्र शब्द नपुसकलिंगी है । इसलिये पुल्लिंग के स्थान पर नपुसकलिंग का कथन करने से लिंग व्यभिचार है । ( V1 ) ' आयुध परशु अर्थात फरसा आयुध है । यहा पर आयुध शब्द नपुसकलिंगी और परशु शब्द पुल्लिंगी है । इसलिये नपुसकलिंग के स्थान पर पुल्लिंग का कथन करने से लिग व्यभिचार है ।" रा. वा । १।३३।६।६८|१२| ( स सि. 1१1३३।५१७ ) ( क पा. |१| पृ. २३५ ) ( |१| पृ १७६) २. संख्या व्यभिचार - ध.।पु१। पृ८७।२२ “एकवचन की जगह द्विवचन आदि का कथन करना सख्या व्यभिचार है जैसे (i) 'नक्षत्र पुनर्वसू ' अर्थात पुनर्वसू नक्षत्र है । यहा पर नक्षत्र शब्द एक वचनान्त और पुनर्वसू शब्द द्विवचनान्त है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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