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________________ ३५६ १४. ऋजु सूत्र नय २ ऋजु सूत्र नय ___सामान्य के लक्षण उत्तर:-चूंकि इस नय की अपेक्षा एक शब्द और एक प्रमाण की एक अर्थ को छोड़कर अनेक अर्थों में एक काल मे प्रवृत्ति का विरोध है, अतः उसमें अनेक संख्या सम्भव नही है। और शन्द व प्रमाण बहुत शक्तियों से युक्त है नही, क्योकि एक मे विरुद्ध अनेक शक्तियों के होने का विरोध है; अथवा एक सख्या को छोड़कर अनेक संख्याओं का वहां (उस दृष्टि मे) अभाव है। ७. लक्षण नं० ७ (वर्तमान मात्र ग्राही):१. स. सि १२३३॥५१३ "पूर्वान्परास्त्रिकाल विषयानतिशय्य वर्तमानकालविषयानादन्ते, अतीतानागतयोविनष्टानुत्पनत्वेन व्यवहाराभावात् । तच्च वर्तमान समयमात्रम् यद्विषय पर्यायमात्रग्राह्यमयमृजुसूत्रः ।" (रा. वा. 1१।३३ ७ ९६) (रा. वा. ।४।४२।१७ ॥२६११५) (ध । ।१७१ १७) अर्थ-यह नय पहिले व पश्चात् होने वाले तीनों कालों के विपयो को ग्रहण न करके वर्तमान काल के विषयभूत पदार्थों को ग्रहण करता है, क्योंकि अतीत के विनष्ट और अनागत के उत्पन्न न होने से उनमे व्यवहार नही हो सकता। वह वर्तमानकाल एक समय मात्र है और उसके विषयभूत पर्याय मात्र को विषय करने वाला यह ऋजुसूत्र नय है। २ का अ,२७४ “यः वर्तमानकाले अर्थपर्यायपरिणतमर्थम् । सन्त साधयति सर्व' तदपि नय ऋजुसूत्रनयः जानीहि ।२७४।" अर्थ-जो वर्तमान काल मे एक समयवर्ती अर्थपर्याय मात्र से परि णत द्रव्य को ही सव कुछ मानता है उसको ऋजुसूत्र नय जानो ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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