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________________ ३६० १४. ऋजु सूत्र नय २ ऋजु मूत्र नय सामान्य के लक्षण ३. न. दी. ३८५।१२८ "ऋजुसूत्रनयस्तु परमपर्यायाथिक । ' स हि भूतत्वभविष्यत्वाभ्यामपरापृष्टं शुद्धं वर्तमानकाला वच्छिन्नवस्तुस्वरूप परामृशति । तन्नयाभिप्रायेण बौद्धमताभिमतक्षणिकत्वसिद्धि।" है अर्थ -ऋजुसूत्र नय परम पर्यायाथिक है । वह भूत व भविष्यत दोनो से अस्पृष्ट शुद्ध वर्तमान काल मात्र मे दीखने वाले वस्तु स्वरूप को परामर्श करता है। उसके अभिप्राय से बोद्धमत मान्य क्षणिकत्व की सिद्धि होती है। ४ स. म. ।२८।३१२ १२७ "ऋजुसूत्र पुनरिदं मन्यते । वर्तमान क्षणविवत्यव वस्तुरूपम् । नातीतमनागतं च । अतीतस्य विनष्टत्वाद् अनागतस्यालब्धात्मलाभत्वात् खरविषाणादिभ्योऽविशिष्यमाणतया सकलशक्तिविरहरूपत्वात् नार्थक्रियानिवर्तनक्षमत्वम् तद्भावाच्च न वस्तुत्वं । “यदेवार्थक्रियाकारि तदेव परमार्थसत्” इति वचनात् । वर्तमानक्षणलिङ्गित पुनर्वस्तुरूपं समस्तार्थक्रियासु व्याप्रियत इति तदेव परमायिकम् । अर्थ-वस्तु की अतीत और अनागत पायों को छोड़कर वर्तमान . क्षण की पर्यायों को (स्वतत्र सत्ता के रूप मे) जानना ऋजुसूत्र नय का विषय है । वस्तु की अतीत पर्याय नष्ट हो जाती है और अनागत पर्याय उत्पन्न नहीं होती, इसलिये अतीत और अनागत पर्याय खरविषाण की तरह सम्पूर्ण सामर्थ्य से रहित होकर कोई अर्थक्रिया नहीं कर सकती, इसलिये अवस्तु है । क्योंकि "अर्थक्रिया करने वाला ही वास्तव में सत् कहा जाता है" ऐसा आगम का वाक्य है, इसलिये वर्तमान क्षण मे विद्यमान वस्तु से ही
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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