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________________ १४. ऋजु सूत्र नय ३५८ २ ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण वाली वस्तु मे द्वित्वादि की सम्भावना भी नहीं है, क्योंकि शीत व उष्ण के समान सहानवस्थान रूप विरोघ देखा जाता है । इसके अतिरिक्त एकत्व से रहित वस्तु हे भी नही, जिससे कि वह अनेकत्व का आधार हो सके। शंका.--एक खम्भे मे मूल अग्र एवं मध्य के भेद से अनेकता देखी जाती है ? उत्तर---नही; क्योंकि, उसमे एकत्व को छोड़कर अनेकत्व पाया नही जाता । कारण कि स्तम्भ मे तो अनेकत्व की सम्भावना है ही नहीं, क्योकि उसमे एकता पाई जाती है । मूलगत अग्रगत अथवा मध्यगत अनेकता भी सम्भव नही है, क्योकि उनमे भी एकत्व को छोड़कर अनेकता नही पाई जाती। यदि कहा जाय कि तीन एक एक (आदि मध्य व मूल) वस्तुओं का समूह अनेकता का आधार है, सो यह कहना भी ठीक नही है, क्योकि उससे भिन्न उनका समूह पाया नहीं जाता। इस कारण इन (ऋजुसूत्र आदि पर्यायाथिक) नयों कि अपेक्षा बहुत्व सम्भव नही है। इसी लिये बहुवचन भी नहीं है। ३ ध० । ६।२६६ ११ "उजुसुदे किमिदि अणेयसखा णत्थि । एयसहस्स एयपमाणस्स य एगत्थं मोत्तूण अणेगत्थंसु एक्ककाले पवुत्तिविरोहादो। ण च सद्द पमाणाणि बहु सत्तिजुत्ताणि अत्थि, एक्कम्हि विरुद्धाणेयसत्तीणं सभवविरोहादो एयसंखं मोत्तण अणेय सखाभावादो वा।" अर्थ.- शंका --ऋजुसूत्र नय मे अनेक सख्या क्यों नहीं सम्भव है ?
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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