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________________ १४. ऋजु सूत्र नय ३५७ २. ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण ही होगा) । इसलिये एक क्षण मे एक ही ज्ञान उत्पन्न होता है। शंका-यदि ऐसा है तो बहु अवग्रह (नाम के मतिज्ञान) का अभाव प्राप्त होता है ? उत्तर:--यह कहना ठीक है, कि ऋजुसूत्र नयो मे बहु अवग्रह नही पाया जाता है, क्योकि इस नय की दृष्टि से एक क्षण मे एक शक्ति से युक्त एक मन स्वीकार किया गया है। यदि अनेक शक्तियों से युक्त मन को स्वीकार कर लिया जाय तो बहु अवग्रह बन सकता है, क्योकि वहां उसके मानने मे विरोध नहीं आता है। (परन्तु ऋजुसूत्र की एकत्व दृष्टि में ऐसा मानना सम्भव नहीं है। वह द्रव्याथिक व्यवहार दृष्टि मे ही सम्भव है।) २ ध ।१२।३०० ११० "सव्वं पि वत्थु एगसखाविसिटु, अण्णहा तस्साभावाप्पसंगादो । ण च एगत्तपडिग्गहिए वत्थुम्हि दुब्भावादीण सभवो अत्थि, सीदुण्हाण व तेसु सहाणवट्ठाणलक्खण विरोहदसणादो । ण च एगत्तविसिट्ठ वत्थु अत्थि जेण अणेगत्तस्स तदाहारो होज्ज । एक्कम्हि खंभम्मि मूलग्ग मज्झ भेएण अणेयत्त दिस्सदि त्तिभणिदे ण तत्थए यत मोतूण अणेयत्तस्य अणुवलभादो ।ण ताव थभगयमणेयत्तं, तत्थ एयत्तुवलभादो । ण मूलगयमग्गणयं मज्झगय वा, तत्थ वि एयत्तमोत्तूण अणेयत्ताणुवलंभादो । ण तिण्णमेगेगवत्थूण समूहो अणेयत्तस्स आहारो, तव्वदिरेगेण तस्समूहाणुवलभादो । तम्हा णत्थि बहुत्तं । तेणेव कारणेण ण चेत्थ बहुवयण पि।" अर्थः-सभी वस्तु एक संख्या से सहित है, क्योकि इसके विना उसके अभाव का प्रसग आता है । एकत्व को स्वीकार करने
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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