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________________ १४ ऋजु सूत्र नय ३५० २ ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण ४ क. पा.।१।ह १६०।२२६।८ “अस्य नयस्य निर्हेतुको विनाशः ।" जातिरेव हि भावाना निरोधे हेतुरिष्यते । यो जातश्च न च ध्वस्तो नश्येत पश्चात् स केन व ।" अर्थ--इस नय की दृष्टि से विनाश निर्हेतुक है, अर्थात उसका कोई कारण नही । “जन्म ही पदार्थ के विनाश मे हेतु कहा गया है, क्योकि जो पदार्थ उत्पन्न होकर अन्तर क्षण मे नष्ट नही होता वह पश्चात् किससे नाश को प्राप्त हो सकता है । अर्थात जन्म से ही पदार्थ विनाशस्वभाव है । उसके विनाश के लिये अन्य कारण' की अपेक्षा नहीं पड़ती। ५ क पा ।१ह१९२।२१८।५ "उत्पादोऽपि निर्हेतुक । तद्यथा नोत्पद्यमान उत्पादयति, द्वितीयक्षणे त्रिभुवनाभावप्रसगात् । नोत्पन्न उत्पादयति , क्षणिक पक्षक्षते । न विनष्ट उत्पादयति; अभावाद्भावोत्पत्ति विरोधात् । न पूर्वविनाशोत्तरोत्पादयो समानकालतापि कार्यकारणभाव समर्थिकम् ।” सस्कृत संक्षिप्त लिखी है पर भाषा अर्थ पूरा लिखा है।) अर्थः- इस नय की दृष्टि ने उत्पाद भी निर्हेतुक होता है। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-जो वर्तमान समय मे उत्पन्न हो रहा है वह तो उत्पन्न करता नही है, क्योकि ऐसा मानने पर दूसरे क्षण मे तीनों लोकों के अभाव का प्रसंग प्राप्त होता है । अर्थात जो उत्पन्न हो रहा है वह यदि अपनी उत्पत्ति के प्रथम क्षण मे ही अपने कार्यभूत दूसरे क्षण को उत्पन्न करता है तो इसका मतलब यह हुआ कि दूसरा क्षण भी प्रथम क्षण मे ही उत्पन्न हो जायेगा। इसी प्रकार द्वितीय क्षण भी अपने कार्य भूत तृतीय क्षण
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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