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________________ १४. ऋजु सूत्र नय २. ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण को उसी प्रथम क्षण में उत्पन्न कर देगा । इसी प्रकार आगे आगे के कार्यभत समस्त क्षण में ही उत्पन्न हो जायेगा और दूसरे क्षण मे नष्ट हो जायेगे । इस प्रकार दूसरे क्षण मे तीनों लोकों के समस्त पदार्थों के विनाश का प्रसग प्राप्त होगा । जो उत्पन्न हो चुका है। वह उत्पन्न करता है, ऐसा कहना भी नही बनता है, क्योंकि ऐसा मानने पर क्षणिक पक्ष का विनाश प्राप्त होता है । अर्थात पदार्थ पहिले ही क्षण मे तो उत्पन्न ही होता है, अतः वह दूसरे क्षण मे कार्य को करेगा, और इसलिये उसे कम से कम दो क्षण तो ठहरना ही होगा। किन्तु वस्तु को दो क्षणवर्ती मानने से ऋजुसूत्र नय की दृष्टि से अभिमत क्षणिकवाद नही बन सकता । तथा जो नाश को प्राप्त हो गया है वह उत्पन्न करता है, यह कहना भी ठीक नही है, क्योंकि अभाव से भाव की उत्पत्ति मानने मे विरोध आता है । तथा पूर्व क्षण का विनाश और उत्तर क्षण का उत्पाद इन दोनों में कार्य कारण भाव की समर्थन करनेवाली समानकालता भी नही पाई जाती है। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-अतीत पदार्थ के अभाव से तो नवीन पदार्थ उत्पन्न होता नही है, क्योंकि भाव और अभाव इन दोनों में कार्यकारण भाव मानने मे विरोध आता है । अतीत अर्थ के सद्भाव से नवीन पदार्थ का उत्पाद होता है, यह कहना भी ठीक नही है, क्योंकि ऐसा मानने पर अतीत पदार्थ के सद्भाव रूप काल मे ही नवीन पदार्थ की उत्पत्ति का प्रसग प्राप्त होता है । दूसरे चूकि पूर्व क्षण की सत्ता अपनी सन्तान मे होने वाले उत्तर अर्थक्षण की सत्ता की विरोधिनी
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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