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________________ १२ नैगम नय २६२ ७ नंगम नय के भेदो का समन्वय २ रा वा. हि. ।१।३३।१६६ " जीव है सो गुणी है (ताकू यहू नैगम नय संकल्प करै है) । यहां जीव है सो अशुध्द द्रव्य है, सो विशेष्य है तातै मुख्य भया । बहुरि गुणी है सो व्यञ्जन पर्याय है । सो विशेषण है तातै गौण है । यहू' अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम है।" अशुद्ध व्यञ्जन पर्याय पर से अशुद्ध द्रव्य का परिचय देने के कारण अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नय है, और मात्र ज्ञान के आश्रय पर अद्वैत मे 'लक्षण लक्ष्य' भेद रूप द्वैत का संकल्प करने के कारण नैगम नय है । इस प्रकार इसका अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नगम नय' ऐसा नाम सार्थक है । यह तो इस नय का कारण है और अशुद्ध द्रव्य के स्वभाव का परिचय देना इसका प्रयोजन है।। ७. नैगम नय के इस विषय के विस्तृत विवेचन मे उठने वाली भेदो का समन्वय कुछ शंकाओं का समाधान अब कर देना योग्य है। १. शंका - द्रव्य पर्याय नैगम के प्रकरण मे शुद्ध द्रव्य व शुद्ध पर्याय का अर्थ 'सत्' सामान्य ही क्यो ग्रहण किया ? क्षायिक भाव क्यों नही ? . उत्तर - सत् स्वभाव सर्व जन सम्मत है और क्षायिक भाव अदृष्ट है इसलिये ऐसा किया है, पर क्षायिक भाव के ग्रहण का निषेध नही है। २ शंका- शुद्ध द्रव्यपर्याय नैगम मे द्रव्य पर से ही पर्याय का संकल्प करने मे क्यों आया। पर्याय पर से भी द्रव्य का संकल्प क्यो करके नहीं दिखाया गया ? उत्तरः- आधार या विशेषण सदा ही परिचित भाव स्वरूप होता है और आधेय या विशेष्य अपरिचित । सत् सामान्य
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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