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________________ १२. नैगम नय २६३ ७. नैगम नय के भेदो का समन्वय सर्व परिचित है पर पर्याय के सत् का स्वीकार जरा कठिन पड़ता है, इसलिये उसका प्रमुखत. परिचय देना योग्य ही है । तहां भी त्रिकाली सत् कारण है और क्षणिक सत् कार्य, इसलिये द्रव्य के अस्तित्व को ही विशेषण बनाया जा सकता है । क्षणिक अस्तित्व स्वय असिद्ध होने के कारण विशेषण बनाया जाने योग्य नही है । ३. शंका - सूक्ष्म होने के कारण भले ही शुद्ध अर्थ पर्याय छद्मस्थ ज्ञान गम्य न हो पर क्षायिक भाव रूप केवल ज्ञानादि शुद्ध व्यञ्जन पर्याये तो किन्ही ज्ञानी जनो के अनुमान का विषय है । उत्तर - यह बात ठीक है, अतः क्षायिक भावो का ग्रहण करने पर शुद्ध व्यञ्जन पर्याय को शुद्ध द्रव्य पर्याय का लक्षण बनाया जा सकता है । इसमे कोई विरोध नही । पर यहा विस्तार भय से उसका पृथक ग्रहण नही किया है । अशुद्ध पर्याय पर से अशुद्ध द्रव्य का सकल्प कराने वाले अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम नय की भांति ही यहा भी समझ लेना । या यो कहिये कि इन दोनो मे लक्षण के प्रति कोई विशेषता न होने के कारण उसका पृथक ग्रहण नही किया है । ४. शंका - अशुद्ध द्रव्य पर्याय नैगम के कथन मे भी पर्याय पर से ही द्रव्य का संकल्प क्यो कराया गया, द्रव्य पर से भी पर्याय का संकल्प क्यों न कराया गया ? उत्तर द्रव्य अनुभब का विषय नही, पर्याय ही है शुद्ध हो कि अशुद्ध । अतः पर्याय पर से ही शुद्ध या अशुद्ध द्रव्यों के स्वभाव का निर्णय किया जा सकता है । पर्यायों के
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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