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________________ १२. नैगम नय २६१ ६. द्रव्य पर्याय नैगम नय भया) । सुख है सो अर्थपर्याय है सो विशेषण है तातै गौण है । यहू अशुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम है।" अशुद्ध अर्थ पर्याय पर से अशुद्ध द्रव्य का परिचय देने के कारण अशुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नय है, और ज्ञानाकार के आश्रय अद्वैत मे लक्ष्य लक्षण भेद रूप द्वैत का सकल्प करने के कारण नैगम नय है । इस प्रकार इसका 'अशुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम नय' ऐसा नाम सार्थक है । यह तो इस नय का कारण है और अशुद्ध द्रव्य के स्वभाव का परिचय देना इसका प्रयोजन है । ५. अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याप नैगम नय - 'अशुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम नय' के समान ही इसके लक्षण का विस्तार समझना । अन्तर केवल इतना है कि यहा पर्याय रूप से किसी गुण के औदयिक भाव रूप चिरस्थायी व स्थूल व्यञ्जन पर्याय का ग्रहण किया जाता है । यहा भी द्रव्य अशुद्ध द्रव्यार्थिक के विषय वाला ही होता है और पर्याय अशुद्ध पर्यायार्थिक के विषय वाली। इस प्रकार अशुद्ध व्यञ्जन पर्याय को विशेषण या लक्षण बनाकर उस के आधार पर अशुद्ध द्रव्य रूप लक्ष्य का सकल्प करना ही इस नय का लक्षण है। जैसे 'दश प्राणों से जीने वाला ही जीव है' ऐसा कहने मे दश प्राण तो अशुद्ध व्यञ्जन पर्याय है और उनसे जीने वाला संसारी जीव अशुद्ध द्रव्य है । यहा अशुद्ध व्यञ्जन पर्याय पर से अशुद्ध द्रव्य का संकल्प किया गया है। इसी बात की पुष्टि व अभ्यास निम्न उद्धरण पर से होता है। १. श्लो वा. ।पु ४ ।पृ ४६ “संसारी अशुद्ध पर्याय पर से जीव का सकल्प करना (अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम । नय है)।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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