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________________ १२ नंगम नय २७५ ५. पर्याय नैगम नय व्यञ्जन पर्याय नैगम के भी शुद्ध व्यञ्जन पर्याय' नैगम और अगुद्ध व्यञ्जन पर्यायनैगम ऐसे दो भेद किये जा सकते है, क्योकि अर्थ व व्यञ्जन दोनो ही प्रकार की पर्याय शुद्ध और अशुद्ध के भेद से दो दो प्रकार की है। परन्तु इनका पृथक पृथक कथन यहाँ किया नही गया है, क्योकि ऐसा करना वाग्गौरव के अतिरिक्त कुछ न होगा। शुद्ध व अशुद्ध पर्याय नयों के लक्षण अपनी अपनी सामान्य अर्थ व व्यञ्जन पर्याय वाली नयो के समान ही होते है । अन्तर केवल इतना है कि अर्थ व व्यजन पर्याय नंगमसमान्य मे तो सामान्य पर्यायों का सकल्प करना अभीष्ट है और उनके भेदों द्वारा पर्यायो के शुद्ध व अशुद्ध विशेपो का संकल्प करना अभीष्ट है । यहां लक्ष्य सामान्य अर्थ व व्यञ्जन पर्याय है और वहा लक्ष्य शुद्ध या अशुद्ध अर्थ व व्यञ्जन पर्याय होगा। इस पर से यह कहा जा सकता है कि तब तो सामान्य पर्याय नैगम का ही कथन करना पर्याप्त था क्योकि अर्थ व व्यञ्जन पर्याय नैगम नये भी उन्ही मे गभित हो जाती है । सो बात नहीं है, क्योंकि दोनो के लक्षणो मे कुछ अन्तर है। जैसा कि आगे उनके लक्षणो पर से जानने में आयेगा यहा अर्थ पर्याय नैगम मे प्रत्येक गुण की क्रमवर्ती क्षणिक पर्याय को अर्थात गुण पर्याय को ग्रहण किया है, भले ही वह सूक्ष्म हो कि स्थूल । व्यञ्जन पर्याय मे किसी भी एक त्रिकाली गुण सामान्य को या वस्तु के आकार को ग्रहण किया गया है । इसके अन्तर्गत द्रव्य पर्यायो का ग्रहण सर्वथा किया नही जा सकता क्योकि उनको द्रव्य रूप स्वीकार किया जाने के कारण द्रव्य नैगम का विषय बनाया जा चुका है। स्थूल दृष्टि में स्थायी दीखने वाली मति ज्ञानादि पर्याये भी व्यञ्जन पर्यायें है । द्रव्य पर्याय वत् उनको भी उपचार से गुण रूप स्वीकार करने में कोई विरोध नहीं है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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