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________________ १२ नैगम नय २७४ ५. पर्याय नैगम नय २. रा. वा. हि. ।१।३३।१६८ "जो पर्यायवान है सो द्रव्य है' तथा गुणवान है सो द्रव्य है' ऐसा व्यवहार नय भेद करि कहै है । ताका यह नैगम नय सकल्प करै है। तहा 'पर्यायवान तथा गुणवान' यह तो विशेषण भया तातै गौण है । बहुरि द्रव्य विशेष्य भया तातै मुख्य भया । ऐसे अशुद्ध द्रव्य नैगम है।" अव इस नय के कारण व प्रयोजन देखिये । ग्राह्य लक्षण अशुद्ध द्रव्याथिक का विषय है इसलिये यह नय अशुद्ध है । द्रव्य पर से द्रव्य का सकल्प, अर्थात द्रव्याथिक के विषय पर से द्रव्याथिक के विपय का सकल्प करने के कारण द्रव्य नय है। अद्वैत सत् मे लक्षण लक्ष्य रूप द्वैत को ग्रहण करने के कारण नैगम है । अथवा वस्तु की अपेक्षा न करके मात्र ज्ञान के आकार को आश्रय कर, सकल्प द्वारा द्वैत किया जाने के कारण भी इसे नैगम कहा जाता है क्योकि नैगम नय ज्ञान नय है ऐसा पहिले कहा जा चुका है। इसलिये इसका 'अशुद्ध द्रव्य नैगम नय' 'ऐसा नाम सार्थक है। यह इस नय का कारण है । तया दृष्ट जो स्वभाव तथा उनके कार्य, उनके आधार पर अखण्ड व अदृष्ट वस्तु का परिचय देना इसका प्रयोजन है। अव नैगम नय के उत्तर भेदों मे जो दूसरा विकल्प, अर्थात ५ पर्याय नैगम दो धर्मों में एकता का ससल्प करना है, उसका नय कथन चलता है । द्रव्य नैगम नय के प्रकरण के प्रारम्भ मे ही यह वात दर्शा दी गई है कि इसका ही दूसरा नाम पर्याय नैगम नय है । इसके प्रमुखतः ३ भेद हैं-अर्थ पर्याय नैगम, व्यञ्जन पर्याय नैगम और अर्थ व्यञ्जन पर्याय नैगम। यद्यपि अर्थ पर्याय नैगम के भी शुद्ध अर्थ पर्याय नैगम व अशुद्ध अर्थ पर्याय नैगम ऐसे दो भेद किये जा सकते है, और इसी प्रकार
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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