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________________ १२. नैगम नय २७६ ५ पर्याय नेगम नय पर्याय नैगम नय मे पर्यायो का ग्रहण करने के कारण नैगम नय का द्रव्याथिक पना विरोध को प्राप्त नहीं हो सकता, क्योकि यहा दो पर्यायो मे अद्वैत किया जाता है अर्थात एक पर्याय पर में दूसरी पर्याय का सकल्प किया जाता है, जब कि पर्यायाथिक नय में के एक पर्याय की सत्ता के अतिरिक्त अन्य किमी की सत्ता ही स्वीकार नही की जाती। यह द्वैत भाव ही इस नय की द्रव्याश्चिकता का द्योतक हे । अव इसके भेदो का क्रम से कथन किया जाता है। १ पर्याय नैगम नय सामान्य -- जैसा कि इसका नाम स्वय बता रहा है, पर्याय पर से पर्याय का सकल्प करने को पर्याय नेगम कहते है । यद्यपि द्रव्य नैगम का लक्षण भी विल्कु ल इन्ही शब्दो मे किया गया है, परन्तु दोनो में कुछ भेद है । द्रव्य का लक्षण द्रव्य के अपने गुण पर्याय व स्वभाव रूप हो सकता है, परन्तु पर्याय का लक्षण अपनी पर्याय स्वरूप नहीं हो सकता, क्योकि जिस प्रकार भेद विवक्षा द्वारा द्रव्य मे गुण पर्याय देखे जा सकते है उस प्रकार भेद विवक्षा द्वारा भी एक पर्याय मे अन्य पर्याय नही देखी जा सकती । द्रव्य अगी है और पर्याय अग । अगी का विशेषण तो अग हो सकता है पर अग का विशेषण कौन वने ? एकत्व मे हि त्व उत्पन्न करना असम्भव है। अत. किसी एक गुण की पर्याय का या उसके स्वभाव का परिचय पाने के लिये उसके साथ किचित मेल खाती अन्य गण की पर्याय का आश्रय लेना अनिवार्य हो जाता है। अत. यहा 'पर्याय पर से पर्याय का सकल्प करना' इसका अर्थ है एक गण की पर्याय पर से अन्य गुण की पर्याय का सकल्प करना । यही दो धर्मो की एकता का तात्पर्य है । द्रव्य या अभेद की अपेक्षा, सत् व द्रव्य, या सत् व गुण, या सत् व पर्याय कोई भिन्न वस्तु नही है । परन्तु पर्याय या भेद की अपेक्षा से सत् नाम का गुण तथा ज्ञानादि कोई अन्य गुण, अथवा
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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