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________________ २४६ १. नैगम नय के भेद प्रभद ही बता दिये जा चुके है । विचार करने से पता चलता है कि यह सब के सब नाम मात्र को ही पृथक पृथक लक्षण है । वास्तव मे तो द्वैत में अद्वैत देखना ही इसका एकमात्र लक्षण है । अब इस नय के कारण व प्रयोजन देखिये । १२. नैगम नय वस्तु के अखण्ड पिण्ड मे पडे हुए उस ही के वस्तु भूत अगों के आधार पर दीखने वालाद्वैत या अनेकपना ही इस नयकी उत्पत्ति का कारण है । क्योकि यदि वस्तु मे यह द्वैत सर्वथा न हुआ होता तो इस प्रकार के द्वैत का संकल्प होना भी असम्भव था । प्रयोजन है अभेद का विश्लेषण करके भेद द्वारा अभेद का परिचय देना । अनिष्णात श्रोता को ऐसा द्वैत उत्पन्न किये बिना वस्तु के अद्वैत का परिचय देना असम्भव है (स० म० | २०२1१1१४ ) मे कहा है कि . - "अभेद मात्र का ज्ञान कराने वाला सामान्य धर्म तो अन्य है तथा विशेष रूप धर्म कुछ ( उस से ) जुदा है, ऐसा ज्ञान नैगम नय के द्वारा होता है ।" नैगम नय बहुत व्यापक नय है । अत इसकी व्यापकता को दर्शाने २. नैगम नय के के लिये इस नय का विश्लेषण करना अत्यन्त भेद प्रभेद आवश्यक है । इसका विषय द्रव्य, गुण व पर्याय तीनो है । जाति व व्यक्ति, शुद्ध व अशुद्ध द्रव्य, शुद्ध व अशुद्ध पर्याय, स्थूल व सूक्ष्म पर्याय, अर्थ व व्यञ्जन पर्याय सब कुछ इस नय के पेट मे समाया हुआ है । अतः विषय की अपेक्षा इसके अनेको भेद प्रभेद हो जाते है जो निम्न चार्ट मे दर्शाये गये है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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