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________________ १० मुख्य गौण व्यवस्था १९७ १. मुख्य गौण व्यवस्था __ का अर्थ है जिसका परिचय देना है । नमक, मिर्च, खटाई, हीग आदि कुछ मसाले उसके गुण रूप अग है और उन मसालों को हीनाधिक मात्रा (Ratio) उन अगो की पर्याय हैं । श्रोता ने आज तक उसे चाखकर नहीं देखा है । केवल वचनों पर से उसको अनुमान कराना है। भले ही उस जीरे के पानी का स्वाद पहिले न चखा हो पर नमक मिर्च आदि मसालों का पृथक पृथक स्वाद उसने पहिले चखा है, अर्थात् पृथक पृथक मसालों का ज्ञान उसको है । यदि श्रोता को इनका भी ज्ञान न होता तो उसे किसी प्रकार भी आप जीरे के पानी का शब्दों द्वारा परिचय न दे सकते, परन्तु अब उसके इस ज्ञान को आधार बना कर आप उसे जीरे के पानी के स्वाद का परिचय दे सकते हैं, भले ही आपके शब्दों पर से वह उसका असल स्वाद चख न सके पर किसी भी प्रकार वह उसके ख्याल मे अवश्य आ जायेगा। __ इस प्रयोजन की सिद्धि के अर्थ आप के वक्तव्य का क्रम परस्पर मे निम्न प्रकार होगा: आप.-क्या कभी नमक का स्वाद चख कर देखा है तूने ? श्रोता.-हा । आपः-कैसा होता है ? श्रोता. खारा । आप:-कैसा खारा ? श्रोता:-मैं जानता हूं पर कह नहीं सकता। आप.-अच्छा तो इस खारे स्वाद को ध्यान मे रखना । श्रोता.-रख लिया। आप:-बस इसी प्रकार मिर्च के स्वाद को, फिर खटाई के स्वाद को, तत्पश्चात हीग के स्वाद को, फिर जीरे के स्वाद को, फिर सौठ के स्वाद को क्रमशः ध्यान मे ले लेना।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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