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________________ १० मुख्य गौण व्यवस्था १६८ १. मुख्य गौण व्यवस्था का अर्थ श्रोता:-ले लिया । आप.-इन सबका पृथक पृथक स्वाद ठीक ठीक ध्यान में आ गया? श्रोता -हा आ गया। आप'-क्या वता सकेगा कि कैसा कैसा ध्यान में आया है ? श्रोता -ध्यान मे आया है पर वता न सकूगा । और ध्यान में भी प्रत्यक्ष व अत्यन्त स्पष्ट आ गया है, क्योकि मैने उन उन पदार्थो को पहिले भिन्न भिन्न अवसरो पर चखकर देखा हुआ है। आपः-खैर ध्यान मे आना चाहिये, मेरे पूछने का यही तात्पर्य है । अब एक काम कर, कि एक सेर पानी ले और इसमे दो तोला नमक मिलाकर इस पानी का स्वाद अनुमान मे ले कि क्या होना चाहिये। श्रोता -उतना स्पष्ट तो नही पर फिर भी अनुमान मे वह आ अवश्य गया है। आप -अब इस पानी मे एक तोला मिर्च मिलाकर इस पानी के स्वाद का ध्यान कर। श्रोता.-कर लिया। आप -इसी प्रकार एक तोला खटाई, फिर एक माशे हीग, फिर एक तोला जीरा, फिर एक तोला सौठ, क्रम पूर्वक एक एक करके इस पानी मे मिलाते जाओ और तब तक क्रम पूर्वक उस पानी का स्वाद भी ध्यान में लेते जाओ। श्रोता.-ठीक है यह भी कर लिया । आप.-क्या स्वाद कुछ वदलता हुआ प्रतीत हुआ ?
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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