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________________ १०. मुक्य गौण व्यवस्था १६६ १. मुख्य गोण व्यवस्था का श्रर्थ आपको उपरोक्त नीले पीले व लाल रंगो के नाम लेकर, उनको कितने कितने पृथक पृथक भागों में मिलाया गया है, यह बताना होगा, और कोई उपाय नही । इसी प्रकार अखण्ड वस्तु का परिचय देने के लिये उसके अगों के नाम लेकर ही बताना होगा, और कोई उपाय नही है । 1 प्रमाण ज्ञान में परिपूर्ण वस्तु की दो प्रमुख बाते पडी है जिनके सम्बन्ध मे पहिले प्रकरणो मे अनेको वार पुन पुन. कथन आ चुका है - अभेद वस्तु और उसके भेद या अंग । दोनो ही बाते जाननी योग्य है । क्योंकि भेदों के जाने बिना तो वस्तु या द्रव्य जाना नही जा सकता, और अखण्ड द्रव्य के जाने बिना वे भेद जाने नहीं कहे जा सकते, क्योकि द्रव्य से बाहर पृथक पृथक उन भेदों की सत्ता लोक मे है ही नही । इन दोनो बातो को क्रम से दर्शाया जा सकता है । विचार करें कि बिल्कुल अपरिचित व अनिष्पन्न कोई श्रोता आपके सामने है, तो क्या कथन क्रम अपनाना होगा, कि आप श्रोता के गले यह दोनों बाते उतारने में सफल हो जाये । स्पष्ट है कि पहिले तो आप पृथक पृथक इन भेदो की व्याख्या करके इन भेदों या अंगों (गुण व पर्यायों) का स्वरूप उसे दर्शायेगे । केवल व्याख्या पर से ही नही पर उन उन अगो का जो कोई भी रूप उस के अनुभव में आ रहा है, है, उसके उस अनुभव की ओर संकेत करके भी । जब पृथक पृथक उन सब अगो के भावो से वह परिचय प्राप्त कर चुकेगा तो आप उससे कहेंगे कि अब इन सब अगो को अपने अनुमान ज्ञान मे मिला जुला कर एक रस कर दे, और देख अव तुझे कैसा दिखाई देता है । जब वह ऐसा कर चुके तो आप कहेंगे कि देख अब थोडी देर के लिये उन अगो वाली पढाई को भूल जा और केवल इस एक रस की ओर देखकर मुझे बता कि क्या दिखाई देता है । अब वह क्या कहेगा, इसके सिवाये कि दिखाई तो देता है पर कह नही सकता । इसी का नाम मुख्य गौण व्यवस्था है । सो दृष्टान्त पर से स्पष्ट हो जायेगी । यद्यपि पहिले यह दृष्टान्त आ चुका है परन्तु फिर भी देता हूं ! कल्पना कीजिये कि एक रस रूप जीरे का हाजमा पानी तो वह पदार्थ
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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