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________________ '७. आत्मा व उसके अंग १४० ११. आत्माकी द्रव्य पर्यायों का परिचय भाव है । आपके असंख्यात प्रदेश सामान्य, जिसमे आकार की कोई अपेक्षा नही पर जिनके आधार पर आकर व्यक्त होता है, आपको 'पारिणामिक भाव है । इत्यादि आत्मा को अन्य प्रकार भी पढ़ा जा सकता है। आत्मा अनादि ११ आत्मा काल से अनंत काल तक का एक रस रूप त्रिकाली की द्रव्य अखण्ड पिण्ड रूप वस्तु या द्रव्य है । इस लोक मे यह पर्यायो का अनेको रूपो में पाया जाता है। इन्ही रूपों को इस परिचय के भेद प्रभेद कहते है। इसमे ज्ञान, चारित्र, श्रद्धा, वेदना, आदि अनेकों त्रिकाली गुण निवास करते हैं। यह भी इसके ही भेद या अग कहे जाते है । इन सर्व गुणो की शुद्ध या अशुद्ध अनेको 'पर्याय उन उन गुणों के भेद या क्षणिक अङ्ग है वे भी इसी के भेद या अङ्ग कहे जाते है । इस प्रकार अनेक प्रकार के नित्य व क्षणिक भेदो का त्रिकाली पुञ्ज व अखण्ड आत्मा एक है। इन सर्व भेदो को आगम मे भेद शब्द के द्वारा या अङ्ग, अश, खण्ड, विशेषण, लक्षण, तथा धर्म, गुण, पर्याय आदि शब्दो द्वारा कहा गया है । और इन सर्व शब्दो के सामने, इन भेदो के अभेद रूप उस पिण्ड द्रव्य, को क्रमश अभेद शब्द के द्वारा या अङ्गी, अशी, अखण्ड, विशेष्य, लक्ष्य, धर्मी, गुणी पर्यायी आदि शब्दों द्वारा कहा गया है। अर्थात् यदि उस भेद को भेद शब्द के द्वारा कहे तो अभेद पिण्ड रूप द्रव्य को "अभेद' शब्द के द्वारा कहते है, यदि उसे 'अङ्ग' शब्द के द्वारा कहे तो द्रव्य को अङ्गी अर्थात अगो वाला कहते है। इसी प्रकार भेद को 'अंश' तो द्रव्य को अंशी (अशो वाला), भेद को 'खण्ड' तो द्रव्य को 'अखड' भेद को विशेषण, तो द्रव्य को 'विशेष्य' (विशष णो द्वारा जिसके प्रति संकेत किया जाय) भेद को 'लक्षण' तो द्रव्य को 'लक्ष्य' (लक्षणो द्वारा जिसको लक्ष्य मे लिया जाये), भेद को 'धर्म' तो द्रव्य को 'धर्मी' भेद को 'गुण' तो द्रव्य को 'गुणी' भेद को पर्याय तो द्रव्य को 'पर्यायी'
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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