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________________ १०. वस्तु में पाचों भावो का दर्शन ७. आत्मा व उसके अग १३६ दृष्ट | क्योकि क्षायिक भाव व्यक्ति रूप है, और पारिणामिक भाव शक्ति से भी अतीत एक भाव मात्र । " आत्मा पदार्थ में यह सर्व भाव इस रूप में पढे जा सकते है । आप का क्रोध मे भरा आशान्त भाव तथा शरीर सहित का आकार औदयिक भाव है क्योकि अन्य पदार्थों व शरीरादि के सयोग की अपेक्षा रखते है । आपका किञ्चत क्षमा की और झुकता हुआ पर क्रोध अंश मिश्रित कुछ शांत व कुछ अशांत भाव तथा वर्तमान का प्रगटा अधूरा ज्ञान, क्षायोपशमिक भाव है, क्योकि शुद्धता अशुद्धता मिश्रित है । ११ वे गुणस्थान मे जाकर उत्पन्न हुआ, एक क्षण के लिये त्रोध के पूर्ण तय. दबजाने से उपजा पूर्ण क्षमा रूप शांत भाव औपशमिक भाव है । क्योंकि एक क्षण के पश्चात ही पुन. कोई भी सूक्ष्म या स्थूल क्रोध का अंश वहां जागृत हो जायेगा | अहं त अवस्था मे प्रगटे पूर्ण क्षमा रूप शांत भाव तथा पूर्ण केवल ज्ञान क्षायिक भाव है, क्योकि अब यह भाव कभी विनष्ट नही होंगे । उनका शरीर सहित का आकार औदयिक भाव है क्योंकि शरीर की अपेक्षा सहित है । सिद्ध अवस्था मे रहा पूर्ण क्षमा रूप शात भाव व केवल ज्ञान तो क्षायिक भाव है ही, पर शरीर रहित का उनके अपने प्रदेशों का शरीर के समान आकार भी उन का क्षायिक भाव है, क्योकि इस आकार मे शरीर की अपेक्षा अब नही रही है । इसी प्रकार अन्य गुणो मे भी यथा योग्य लागू कर लेना । परन्तु इन सब उपरोक्त भावो से अतीत वह शांति का त्रिकाली भाव, जिसमें से कि यह क्षायिक भाव रूप शांति व ज्ञान व्यक्त हुए है, यदि यह न होता तो यह व्यक्ति कहां से प्रगट होती इस अनुमान पर जो जाना जाता है, चारों भावों मे जो व्याप्त है, आत्मा की सब ही अवस्थाओं में जो रहता है, जो न तो औदयिक भाव मे विनष्ट हो पाया और न क्षायिक भाव मे नवीन जागृत हुआ है, जिसमे उत्पत्ति व विनाश का प्रसंग ही नही, ऐसा शांति व जानने पने का सहज स्वभाव आपका पारिणामिक
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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