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________________ ७ आत्मा व उसके अग १४१ . ११: 'आत्मोकी द्रव्य पर्यायो का परिचय तथा अन्य भी तथा योग्य रूप में इसी प्रकार कहा जाता है । आमने सामने के यह शब्द आगम में जोड़ों के रूप में प्रयोग करने मे आते है। भेद-अभेद, खंड-अखंड पिंड, अंग-अंगी, अश-अशी, गुण, गुणी पर्याय-पर्यायी,, “धर्म-धर्मी विशेषण-विशष्य, लक्षण, लक्ष्य इत्यादि । भेद दो प्रकार से देखने में आते हैं-द्रव्य में दीखने वाले अर्थात द्रव्य पर्याय और गुणमें दिखने वाले अर्थात गुण पर्याय । द्रव्य पर्याय और गुण पर्याय का कथन पहिले वाले अधिकार में किया जा चुका है । यहां जीव या आत्मा की द्रव्य पर्यायों का किञ्चित परिचय दे दना योग्य है । अन्य जो जड़ पदार्थ उनमें भी तथा योग्य रूप मे द्रव्य पर्यायों के भेद जान लेना । जीव द्रव्य दो रूपों में पाया जाता है मुक्त व ससारी । मुक्त तो एक ही रूप में पाया जाता है, पर ससारी दो रूपों में पाया जाता स्थावर व त्रस । स्थावर पाच रूपों में पाया जाता है पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति । ये सब भी दो दो रूपो मे पाये जाते है । सूक्ष्म-स्थूल या बादर । त्रस चार रूपों मे पाये जाते है दो इन्द्रिय त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय । पञ्चेन्द्रिय दो रूपो मे पाये जाते हैं सज्ञी, असंज्ञी अर्थात मनवाला बिना मनवाला और इसी प्रकार वह वह भेद आगे आगे अपने उत्तर भेदों व रूपों में निवास करता हुआ अनेक प्रभेदों रूप से पाया जाता है । इस का स्पष्ट भाव निम्न चार्ट पर से ग्रहण किया जा सकता है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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