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________________ ६. द्रव्य सामान्य . .. ७ २ द्रव्य व उसके अंगो का परिचय कहूं कि भगवान वीर-तो यहा बड़े पापी दिखाई दे रहे है, तो आप एकदमः चौक उठते है। इसका कारण क्या? केवल यही कि उनके अखिल जीवन का या उनके सम्पूर्ण अंगो का चित्रण या प्रमाण ज्ञान आपको नही है । केवल सुनी सुनाई: कुछ बातें आपकी भक्ति मे पड़ी हैं । इन सबको यथा स्यान जड़े बिना वे सब भी वास्तव मे आपके लिये उपयोगी नही है । अतः जो कोई भी जाने स्पष्ट चित्रण सहित जाने, यही इस नयके प्रकरणको जानने का प्रयोजन है । · : इस प्रयोजनकी सिद्धि के अर्थ वस्तु तथा उसके ध्रुव व क्षणिक २. द्रव्य व उसके सम्पूर्ण अंगों का यथा योग्य सामान्य परिचय होना ! अगो का परिचय: अत्यन्त आवश्यक है । उसके अभाव मे नयो का कथन आगे चल न सकेगा। क्योकि नयों को उन अंगो पर ही तो लागू करके प्रयोगमे लाना है । खाली नयो के नाम व लक्षण जानने से तो उपरोक्त प्रयोजन की सिद्धि हो नही सकती । यद्यपि द्रव्यो के अंगों का कथन करना यहां अभीष्ट नहीं है, .... क्योकि वह एक स्वतंत्र विषय है, और नय समझने के लिये आप सब को यह विषय तो आता ही होगा, यह बात अनुक्त रूप से स्वीकृत (Understood) है । परन्तु फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में ऐसा नही है, सम्भवतः आप मे से कुछ तो उस विषय मे अभ्यस्त हो पर कुछ उससे अनभिज्ञ ही हों । अतः योग्य तो यह था कि पहिले उस विषय का पूर्ण परिचय प्राप्त करके यहा आते, परन्तु अब यदि आही गये हो और इतने दिन से सुन रहे हो तो आप को निराश करना योग्य नही । इसलिए यद्यपि इस प्रकरण मे उस विषय का विस्तृत व पूरा परिचय तो दिया न जा सकेगा, क्योंकि उसका वर्णन ही सम्भवतः महीनों में पूरा हो पावे, और तब यह मूल विषय पीछे रह जारेगा । अतः प्रयोजन वश यहां उस विषय का सक्षिप्त परिचयं दे देना ही पर्याप्त समझता हूं। परिचित व्यक्तियो
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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