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________________ ६. द्रव्य सामान्य ८८ २. द्रव्य व उसके अंगों का परिचय को उससे वह ताजा हो जायेगा, और अपरिचित व्यक्तियों को कुछ धुन्धला सा अनुमान हो जायेगा, जो कि अगले प्रकरणों के लिये उनके हृदय मे भूमिका की स्थापना कर देगा, और वह उन प्रकरणों की सरलता से पकडने के योग्य हो जायेगे । ___ इस विषय सम्बन्धी कुछ मुख्य सिद्धान्त ही नीचे निर्धारित किये जाते है । यद्यपि पहिले भी उनके सबंध मे संकेत आ चुके है पर यहा एक ही स्थल पर सब को संगृहीत करना तथा उन्हे और अधिक विशदता प्रदान करना अभीष्ट है । कल वाले दृष्टांत में भी यद्यपि उन अगों का सकेत किया गया, और उन्हे ३० पृथक पृथक कोष्टको मे स्थापिन करके एक सम्पूर्ण वस्तु का परिचय दिलाने का प्रयत्न किया गया पर वास्तव मे वे ३० अंग वस्तु मे इस प्रकार कोष्टकों में पड़े हुये नही है । भले समझाने के लिये यहां यह कोष्टक बना दिय गये हों, पर वहा तो वे एक रस रूप होकर पड़े है। सो कैसे वही यहा स्पष्ट किया जायेगा । वस्तु अनेक गुणों व पर्यायों का पिड है, पर गुण व पर्याय उसके अग है । उन अंगो से रहित वस्तु कुछ भी नहीं । जैसे कि आम अपने किसी विशेष रंग, स्वाद, गंध, स्पर्श के अतिरिक्त कुछ नहीं । इन्हे पृथक कर लिया जाय तो आम नाम का कोई पदार्थ रहता नही । परन्तु इन्हें पृथक किया जाना सम्भव नही । क्यो कि यहाँ पिण्ड या समूह से तात्पर्य यह नही है कि जैसे बोरी मे अनाज भरा है वैसे वस्तु नाम की बोरी मे कोई गुण व पर्याय भरी है, और इस प्रकार बोरी रूप वस्तु अलग हो और गुण पर्याय अलग। या ऐसे भी नही है जैसे कि अनेक लकड़ियों को बाध कर एक गट्ठा बना लिया गया हो, जिस मे बोरी रूप गट्टे की पृथकता तो यद्यपि नही रह पाई है, परन्तु इन अंगों रूप लकड़ियों की पृथकता दृष्ट होती है, जिनको कभी भी बखेरा जा सकता है या बांधा जा सकता
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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