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________________ ६६ मेरी जीवन गाथा सजावटमें निकल जाता है जिससे विद्याका प्रगाढ़ अध्ययन नहीं हो पाता। प्राचीन कालमे लोग थोडा पढ़ कर भी अधिक विद्वान् हो जाते थे पर आजके छात्र अधिक पढ़ कर भी अधिक विद्वान् नहीं वन पाते हैं। इसका कारण उनका चित्तविक्षेप ही कहा जा सकता है। गुरुकुलकी आवश्यकता इसलिये है कि वे नागरिक वातावरणसे दूर स्वच्छ वायुमण्डलमे होते हैं और इसीलिये उनमें पढ़नेवाले छात्रोंको चित्तविक्षेपके साधन नहीं जुट पाते। इस दशामे वे अच्छा अध्ययन कर सकते हैं। हस्तिनागपुरका वर्तमान वातावरण अत्यन्त शान्तिपूर्ण है। यहाँ गुरुकुल जितना अच्छा कार्य कर सकता है उतना अन्यत्र नहीं। इसकी पूर्तिके लिये ५ लाख की योजना की गई। अपील करने पर ५८०००) पचास हजारका चन्दा हुआ। चौतीस हजार ३४०००) पहिलेका था । कुल चौरासी हजार हुआ। यद्यपि इतनेसे उसकी पूर्ति नहीं हो सकती तथापि जो साधन उपलब्ध हों उसीके अनुसार काम हो तो हानि नहीं। यदि सब लोग परस्परका अविश्वास दूर कर दें तथा यह उद्देश्य अपने जीवनका बना लें कि हमारे द्वारा जगत्का कल्याण हो तो बड़ी बड़ी योजनाएँ अनायास ही पूरी हो सकती हैं। ___ एक दिन प्रातः नसियाजीके दर्शन किये, चित्त प्रसन्न हुआ। हरी भरी झाड़ियोंके बीच जानेवाली पगडंडीसे नसियाजीको जाना पड़ता है। इन स्थानों पर अपने आप चित्तमें शान्ति आ जाती है। मन्दिरसे थोड़ी दूरी पर पाण्डवोंका टीला नामसे प्रसिद्ध स्थान है जहाँ कुछ खुदाईका काम हुया है। गवर्नमेन्टकी ओरमे यहाँ एक नगर बसाया जा रहा है जिसमें शरणार्थी वमाये जायेंगे । जैनी लोगोंको उचित है कि यहाँ पर १ विद्यालय बोलें जिसमे शरणार्थी लोगोंके वालकोंको अध्ययन कराया जाये तथा १ प्रापधालय गोला जावे जिसमें आम जनताको औपच यॉटी जा। अठान्दिरा पर्य
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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