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________________ हस्तिनागपुर आवश्यकता उपदेशकी है। जैनकुलमै उत्पन्न हुए लोगोंकी त्यागकी ओर स्वाभाविक प्रवृत्ति देखी जाती हैं। फिर उन्हें यदि बार-बार प्रेरणा मिलती रहे तो उनका वह त्यागभाव अधिक विकसित हो सकता है। मैंने देखा कि किसी भी व्यक्तिके ऊपर यदि प्रभाव पड़ता है तो आत्माकी पवित्रताका ही पड़ता है। शब्दोका नहीं, उनका प्रभाव तो कानो तक ही रहता है । अच्छे शब्द हुए, लोग सुनकर प्रसन्न हो जाते हैं और कटुक शब्द हुए, नाराज हो जाते हैं। कुछ समय बाद 'लोग वक्ताने क्या कहा' यह भूल जाते हैं। परन्तु एक वीतराग मनुष्यकी आत्मासे यदि कोई शब्द निकलते हैं तो लोगोंके हृदय उन्हे सुनकर द्रवीभूत हो जाते हैं-वे कुछ करनेके लिए विचार करते हैं। यदि ये व्रती लोग अपना आचरण पवित्र रक्खें तथा जन कल्याणकी भावना लेकर भ्रमणके लिये निकल पडें तो जनताका कल्याण हो जावे । पूर्व समयमें निर्ग्रन्थ मुनियोंका विहार होता था जिससे उनके उपदेश लोगोंको अनायास ही प्राप्त होते रहते थे, इसलिये जनताका आचार पवित्र रहता था पर आज यह साधन दुर्लभ हो रहे हैं। यही कारण है कि लोगोंका आचरण निर्मल नहीं रहा। ___ फागुन शुक्ला १२ सं० २००५ को मध्यान्होपरान्त १ वजेसे गुरुकुलका उत्सव हुआ। प्रायः अच्छी सफलता मिली। लोगोंके चित्तमे यह बात आ गई कि गुरुकुलकी महती आवश्यकता है। बच्चोंका हृदय अपक्व घटके समान है। उसमें जो संस्कार भरे जावेंगे वे जीवन भर स्थिर रहेंगे। आजका नागरिक जीवन विलासतापूर्ण हो गया है जिसका प्रभाव छात्र समाज पर भी पड़ा है। मैंने देखा है कि आजका छात्र साधारण गृहस्थकी अपेक्षा कहीं अधिक विलासी हो गया है। यह बात उसके रहनसहन तथा वेषभूषासे स्पष्ट होती है। उसका बहत समय इसी साज
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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