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________________ ६१ हस्तिनागपुर यहाँसे प्रातः काल ७॥ बजे चलकर ॥ बजे गंधारी आ गये। यहाँ पर धूमसिंहके यहाँ भोजन किया। यहाँ पर ४ घर हैं। चारों ही अच्छे हैं। घसीटामल अत्यन्त दयालु हैं। आयका भाग दानमे लगाते हैं। यहाँसे चलकर तिसना आ गये। तिसना गंधारीसे ५ मील है। यहाँ पर ६ घर जैनी है । प्रायः सभी सम्पन्न हैं। यहाँ आनन्दस्वरूपके घर भोजन किया। यहाँसे १२ मील हस्तिनापुर है । हस्तिनापुर पहुँचनेकी भावना हृदयको विशेषरूपसे उत्सुक कर रही थी । अतः यहाँसे चलकर वटावली ठहर गये और अगले दिन प्रातः २ मील चलकर वसूमा आ गये। यहाँ पर वहत उच्चतम मन्दिर है । मन्दिरसे श्री शान्तिनाथ जीकी मूर्ति है। १२३१ सम्बत्की है। बहुत सुन्दर और देशी पत्थरकी है । यहाँ पर तिसनासे आये हुए आनन्दस्वरूपजीके यहाँ भोजन हा । आप हस्तिनागपुर तक बराबर हमारे साथ आये । फागुन सुदी पञ्चमी सं० २००५ को दिनके ३ बजते बजते हम हस्तिनागपुर आ गये । आनन्दसे श्रीजिनराजका दर्शन किया। हस्तिनागपुर यह वही हस्तिनागपुर है जहाँ शान्ति, कुन्थु और अरनाथ भगवान्के गर्भ, जन्म तथा तप कल्याणक हुए थे। देवोपनीत जिसकी रचना थी तथा जहाँ भगवान्के गर्भमे आनेसे ६ माह पूर्व ही से रत्नवर्षा होने लगती थी। जगत् प्रसिद्ध कौरव पाण्डवोंकी भी राजधानी यही थी। अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनियोंकी रक्षा भी यहाँ हुई थी तथा रक्षाबन्धनका पुण्य पर्व भी यहींसे प्रचलित हुआ था। यहाँके प्राचीन वैभव और वर्तमानकी निर्जन अवस्था पर दृष्टि डालते हुए जव विचार करते हैं तो अतीत और वर्तमानके बीच भारी अन्तर अनुभवमे आने लगता है।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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