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________________ खतौली क्योकि जहाँ पर पराधीनता है वही दुःख है अतः जहाँ तक बने परकी पराधीनता त्यागो। यही कल्याणका मार्ग है। स्वतन्त्रता ही सुखकी जननी है, सुखका साधन एकाकी होता है।' ____ फाल्गुन वदी ८ सं० २००५ के ३ बजे खतौली आये। ग्रामके सर्वे मनुष्य आये, स्त्री जन भी अधिक संख्यामे आई। लोगोंकी स्वागत पद्धतिको देखकर मनमें विकल्प आया कि 'केवल रूढिकी प्रवृत्ति ही चलनेसे लाभ नहीं। मार्गमे चाँदीके फूल विखेरे। मैं तो इसमे कोई लाभ नहीं मानता। परोपकार करनेकी ओर लक्ष्य नहीं। इसका कारण यह है कि हम लोग आत्मतत्त्वको नहीं जानते अतः अनावश्यक प्रवृत्ति कर अपनेको धर्मात्मा मान लेते हैं। परन्तु धर्मात्मा वही हो सकता है जो धर्मको अंगीकार करें। यह वही खतौली है जहाँ पर लाला हरगृलालजी बहुत ही प्रबल विद्वान् और उदार थे। आप केवल संस्कृतके ही विद्वान् न थे किन्तु फारसीके भी पूर्ण विद्वान् थे। आप यहाँसे २ कोस पर मौलवी साहबका गृह था वहाँ पर पढ़ने जाते थे। मौलवी साहबने कहा-हरगू बेटा। तुमको कष्ट होता होगा अतः हम स्वयं खतौली आया करेंगे और यही हुआ। यहाँ पर वर्तमानमे कई सज्जन ऐसे हैं जो धवलाका स्वाध्याय करते हैं। श्री महादेवी बहुत विदुषी है, त्यागकी मूर्ति है, निरन्तर अपना समय ज्ञानार्जनमें लगाती है। यहाँ पर पहले जो कुन्दकुन्द विद्यालय था वह अब अंग्रेजीका कालेज हो गया । इस युगमें लोकैषणाके कारण अध्यात्मविद्याकी ओरसे लोगोंका झुकाव कम होता जा रहा है परन्तु मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि इस जीवका वास्तविक कल्याण अध्यात्मविद्यासे ही हो सकता है। यहाँ पर कई सज्जन हैंबाबूलालजी साहब महापरोपकारी हैं। लाला 'त्रिलोकचन्द्रजी तो एक पैरसे कमजोर होकर भी धार्मिक कार्योंमें अपना समय
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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