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________________ ५८ मेरी जीवन गाथा लगानेमें कृपणता नहीं करते। लाला विश्वम्भरसहायकी क्या कहें सामग्री होते हुए भी उसका उपभोग करनेमें संकोच करनेसे नहीं चूकते। हमारा आपका बहुत प्राचीन सम्बन्ध है । हमारी सुनते तो हैं परन्तु 'हर्रा लगे न फटकरी रंग चोखा हो जाय' ऐसा मधुर भाषण कर टाल देते हैं। टालते रहें पर हमें विश्वास है कि एक दिन अवश्य मार्ग पर चलेंगे। मार्गमें हैं पर चलनेका विलम्ब है। यहीं पर लाला खिचोड़ीमल्ल हैं जो सचमुच एक उदारताका पुतला है। यदि ऐसा मनुष्य विशेष धनिक होता तो न जाने क्या करता? मेरा इनका बहुत दिनसे सम्बन्ध है, निरन्तर इनकी प्रवृत्ति स्वाध्यायमें रहती है। पूजन प्रतिदिन करते हैं। मुरारमें आप ४ मास रहे । निरन्तर त्यागियोंको आहार कराना, संस्थाओंमे दान करना, किसीको कुछ आवश्यकता हो उसकी पूर्ति करना, विद्वानोंका आदर करना आपके प्रकृति सिद्ध कार्य हैं। बनारस तथा सागर विद्यालयकी निरन्तर सहायता करते हैं। आपका अधिक समय मेरे पास ही जाता है। आपने अपने भानजेके पाणिग्रहणमें २५००) का दान किया तथा विवाह नवीन पद्धतिसे किया। कन्यावालेसे कुछ भी आग्रह नहीं किया। आपका व्यवहार इतना निर्मल है कि कोई किसी पक्षका क्यों न हो प्रायः आपसे स्नेह करने लगता है। खतौलीमे प्रायः सर्व सज्जन हैं। यहाँ पर श्री माडेलाल जी दस्सा बड़े प्रतापशाली थे। आपने १ जैन मन्दिर भी उत्तम बनवाया है। आपके २ पुत्र बहुत ही योग्य थे। १ अब भी विद्यमान है । उन्हींके बॅगलामे मैं ठहरा था। __ प्रातःकाल ८३ वजेसे ३ बजे तक प्रवचन किया परन्तु मेरी बुद्धिमें तो यह आया कि हम लोग रूढिके उपासक हैं, धर्मके वास्तविक तत्त्वसे दूर हैं। धर्म तो आत्माकी शान्ति परिणतिके उदयमें होता है अतः उचित तो यह है कि पर पदार्थके साथ जो
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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