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________________ मेरी जीवन गाया । गये । वहाँसे गाजे-बाजेके साथ खिरनीसरायके मन्दिरमे गये। आनन्दसे दर्शन कर मन्दिरकी धर्मशालामें ठहर गये। स्थान त्यागियोंके ठहरने योग्य नहीं । यदि वास्तवमें धार्मिक बुद्धि है तो त्यागीको गृहस्थके मध्यमें नहीं ठहरना चाहिये । गृहस्थोंके संपर्कसे बुद्धिमे विकार हो जाता है और विकार ही आत्माको पतित करता है अतः जिन्हें आत्महित करना है वे इन उपद्रवोसे सुरक्षित रहे। अलीगढ़ वह स्थान है जहाँ पर श्री स्वर्गीय पण्डित दौलतरामजी साहवका जन्मस्थान था। आपका पाण्डित्य वहुत ही प्रशस्त था, आपके भजनोंमे समयसार गोम्मटसार आदि ग्रन्योंके भाव भरे हुए हैं। छहढाला तो आपकी इतनी सुन्दर रचना है कि उसके अच्छी तरह ज्ञानमें आने पर आदमी पण्डित बन सकता है। पण्डित ही नहीं मोक्षमार्गका पात्र बन सकता है । 'सकल ज्ञेय ज्ञायक तदपि' स्तोत्रमें समस्त सिद्धान्तकी कुक्षी बता दी है। स्तवन करनेका यथार्थ मार्गप्रदर्शन कर दिया है। यहीं पर वर्तमानमे पण्डित श्रीलालजी हैं। आप संस्कृतके प्रौढ़ विद्वान हैं। आपकी श्रद्धा वीस पन्थके ऊपर दृढ़ हो गई है। आप पहले खड़े होकर पूजा करते थे, अव बैठकर करने लगे हैं तथा अपने पक्षको आगमानुकूल पुष्ट करते हैं। हमारा आपसे प्राचीन परिचय है । आपके पुत्र कमलकुमारजी हैं। आपने मध्यमा तक व्याकरणका अध्ययन किया है। पण्डितजीके पिता पं० प्यारेलालजी धर्मशास्त्रके उत्तम विद्वान थे । गोम्मटसारादि ग्रन्थोंके मर्मज्ञ थे। छहढालाके अर्थको घण्टों निरूपण कर सभा को प्रसन्न कर देते थे। आपके तक वहुत प्रबल शक्तिमय थे। अच्छे अच्छे वक्ता आपको मानते थे। आपकी श्रद्धा दिगम्बर आम्नायमे तेरापन्थको माननेकी थी। हम तो उनको अपना हितैषी १.अव श्रापका देहान्त हो गया है ।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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