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________________ लघु यात्रा ४६३ 'प्रतिदिन जो कथा करते हो यदि उसमेसे एकका भी पालन करो तो दुःखसे मुक्त हो सकते हो ।' _ 'आत्मा और अनात्माका भेद ज्ञान ही संसार छेदका उपाय लघु यात्रा हृदयमें गिरिराजके दर्शन करनेकी उत्कट उत्सुकता थी इसलिये यहाँसे प्रस्थान करनेकी बात सोच ही रहा था कि कलकत्तासे श्री प्यारेलालजी भगत तथा ईसरीसे व्र० सोहनलालजी व सेठ भंवरीलालजी आ गये। इन सबकी प्रेरणासे शीघ्र ही प्रस्थान करनेका निश्चय कर लिया। फलस्वरूप कार्तिक सुदी २ सं० २०१० रविवारको १ बजे गयासे प्रस्थान कर दिया । ५०० नर-नारी भेजने आये। संसारमे राग बुरी वस्तु है। जहाँ अधिक संपर्क हुआ वहीं राग अपने पैर फैला देता है। चार पाँच माहके संपर्कसे गयाके लोगों का यह भाव हो गया कि ये हमारे हितकर्ता हैं अतः इनका समागम निरन्तर बना रहे तो अच्छा है। मेरे वहाँसे चलनेपर उन्हें वहुत दुःख हुआ। पर संसारके समस्त पदार्थ मर्नुष्यकी इच्छानुसार तो नहीं परिणमते। गयासे ४३ मील चलकर संध्याकाल हरिओ ग्राम पहुँच गये। यहाँ कोडरमासे भी कुछ सज्जन आये। रात्रि सानन्द व्यतीत हुई। प्रातः ६ बजे ३ मील चलकर मस्कुरा ग्राम आगये । यहाँ बगलामे ठहर गये। गयासे चौका आये थे, उसमे भोजन किया । यहाँ जैनोंके घर नहीं हैं। मध्याह्नकी सामायिक के बाद १ बजे यहाँसे प्रस्थान कर जिन्दापुरके स्कूलमे विश्राम किया।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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