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________________ मेरी जीवन गाथा 'धर्मकी परिभाषा प्रत्येक पुरुष करता है परन्तु उसरूप प्रवृत्ति करना किसी महापुरुपके द्वारा ही होता है।' _ 'गुरु मार्गदर्शक हैं चलानेवाले नहीं। सूर्य मार्गप्रकाशक हैं चलानेवाला नहीं । यदि कोई निरन्तर सूर्यकी उपासना करे और मार्ग चले नहीं तो क्या इच्छित स्थानपर पहुंच जावेगा।' ___ 'जिस आत्मामे अनन्त संसारके निर्माणकी शक्ति है। उसमें उसके नाश करनेकी भी शक्ति है ।। 'आजकल मनुष्य मनुष्यताका आदर करना भूल गया, केवल प्रशंसाका लोभी होगया है।' __'संसारमें दुःखका मूल कारण आशाके अतिरिक्त परको निज मानना है।' 'जानना उतना कठिन नहीं जितना उपयोग द्वारा कर्तव्यमें लाना कठिन है। अविरत सम्यग्दृष्टि मोक्षमार्गको यथार्थ जानता है परन्तु तदनुरूप आचरण नहीं कर पाता।' ___'संसारकी प्रशंसासे न कुछ लाभ है और न निन्दासे कुछ हानि । लाभ तो अपने परिणामोंको निर्मल करनेसे ही होगा।' 'चित्त भूमिकी मलिनता ही संसारकी जननी है। संसारको प्रसन्न करनेका प्रयत्न करना भी संसारका कारण है।' धर्म क्या है ? यह तो वही आत्मा जानता है जिसने संसारके प्रपञ्चोंको त्याग निजकी शरण ली है। 'अनन्तकाल बीत गया पर परको अपनाना न त्यागा, उमीरा ‘फल अनन्त संसार है।' 'धीरतासे च्युत नहीं होना महान आत्माका कार्य है।' 'किसीके प्रभावमें आना ही इसका द्योतक है कि ग्रामीय स्वत्वसे च्युत है।'
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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