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________________ ४६४ मेरी जीवन गाथा आगामी दिन प्रातःकाल ६ वजे चलकर ७॥ वजे कर्मणीके डाँक वॅगलामे ठहर गये। गयावाले सूरजमलजी तथा रतन बाबूकी मा के चौकेमे आहार हुआ। स्थान स्वच्छ था। साथमें लगभग २५ मनुष्य होंगे। सबका भोजन हुआ। १ बजे चलकर ॥ बजे एक स्थानपर ठहर गये । वहीं कुछ उपदेश दिया। नगरके कोलाहल पूर्ण स्थानसे निकलकर जव जंगलमे पहुंचते हैं तो मनमे अपने आप शान्ति आजाती है और उन दिगम्बर मुनियोंके ऊपर सुतरां ध्यान आकर्षित हो जाता है जो जंगलके स्वच्छ वातावरणमे ही अपना समय यापन करते थे। रात्रिको जहाँ विश्राम किया वहाँ ५० घर मुसलमानोंके थे। सबने सौमनस्य व शिष्टताका व्यवहार किया । यहाँसे अगले दिन प्रातः ६ वजे चलकर ८ बजे ढोभीके डांक बंगलामे पहुंच गये। प्रवचनके वाद गयावाले सोनू वायूके चाकामें आहार हुआ । मध्यान्हके वाद चलकर रात्रिमे भदैया ग्रामके सरकारी मकानकी दहलानमे विश्राम किया। दूसरे दिन प्रातः ६।। बजे ६ मील चलकर ८॥ बजे कादुदाग ग्रामके डाक बंगलामे पहुँच गये। अबतक ४० मनुष्योंका संघ होगया था। श्री विहारीलालजी गयावालोंके यहाँ आहार हुआ । रात्रिको भी यहीं विश्राम किया। अन्य दिन प्रायः ८ मील चलकर ह॥ बजे नदी पार कर जंगलमें भोजन हुआ। कोडरमावालोंका चौका था, उसीमें भोजन हुआ। कोडरमासे श्री गौरीलालजी आदि ६ महानुभाव आये। नायंकाल चलकर भलुआके डाक बंगलामें विश्राम किया। बाज अधिक चलना पड़ा उसलिए शरीरमें थकावटया अनुभव होने लगा। दमर दिन प्रातः ६ बजे चलकर । बजे चौपारन पहुँच गये। गयाया यहीं पर जिन मन्दिर मिला। श्री जिनेन्द्रदेवरं दर्शन र पगमे अपार प्रानन्द हुया। आज अष्टमी दिन था। प्रनाथगन शास्त्रीने शास्त्र प्रवचन किया। दूसरे दिन मन्दिर प्रा:
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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