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________________ चाणक्यसूत्राणि कारण धर्म विद्या तथा अनुभवोंके केन्द्र गुणी पुरुषों, उनके गुणों, धर्मविधा मादिकी संरक्षक तथा प्रचारक संस्थानोंको सुरक्षित न करके प्रत्युत उपेक्षा करके, समाजसे धर्म और ज्ञानको विलुप्त करके अज्ञान तथा मनीतिका प्रसारक बनजाता है। ___ महामन्त्री, मुख्यन्यायाधीश, सेनापति, राजश्रेष्ठी, ज्योतिर्विद, राज्यका सबसे प्रभावशाली व्यक्ति, समाजोंके चार मुखिया, समस्त प्रकारकी सेना. भोंके मुख्यपुरुष, पुरोहित, मन्त्री मादि राजाओंके तीर्थ होते हैं। इन्हें अपनी नीतिका पूर्ण समर्थक बनाये रहने या अपनी नीतिमें इन सबके अनुभवोंका समावेश होने के लिये इनके घनिष्ट संपर्क में रहना, यह एक असाधारण अवधान, परिश्रम, इन्द्रियसंयम, तथा निरलसताका काम है। यह काम मालसीसे नहीं होता। (राज्यतन्त्रका लक्षण ) अलब्धलाभादिचतुष्टयं राज्यतन्त्रम् ॥ ४२ ॥ १- अलब्धका लाभ २- लब्धकी रक्षा ३- रक्षितका वर्धन ४- तथा रक्षितका राजकर्मचारियोंकी उचित नियुक्तिसे उचित कार्यों में विनियोग या व्यय, ये राज्यव्यवस्थाके चार आधार हैं। य चारों बाते मिलकर राज्यतन्त्र कहाने लगती हैं। विवरण-- राज्य इन्हीं चार बातोंपर निर्भर होते हैं । राज्यकी ये ही चार मुख्य समस्यायें होती हैं । इसका यह अर्थ हुआ कि राज्याधिकारी लोग न तो अर्थवृद्धि में प्रमाद करें न राज्यश्रीका मसव्यय करें और न उसे मनुपयोगसे नष्ट होने दें। क्योंकि श्रीकी दान भोग तथा नाशसे चौथी गति नहीं है । राजा लोग सामादि उपायोंसे, फूलों में से अति शुद्र मात्रामें रस लेते फिरनेवाले मधुकरोंके समान सुसह्य उपायोंसे प्रजा से धनसंग्रह करें और पृथ्वीपरसे जल सोखकर उसे पाथवीपर ही बरसा देनेवाले मेघोंके समान उसे प्रजाकी ही श्रीवद्धि में व्यय कर डालें । उसे लटके मालकी भांति अपनी
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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