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________________ आलस्यसे हानि ४ मनुष्यको सस्य दान अनालस्य मनसूया क्षमा तथा प्रति ये ६ गुण कभी न त्यागने चाहिये। पाठान्तर- न चालस्ययुक्तस्य रक्षितं विवर्धत । न भत्यान् प्रेषयति ॥४१॥ अलस ( सत्यहीन प्रयत्नहीन भोगासक्त ) राजा या राज्याधिकारी राजकीय कर्मचारियोंको काम या उचित सेवामें लगाने तथा उनसे उचित सेवा लेनमें प्रमाद कर बैठते हैं। विवरण- काम करनेसे बचना जिप्सका स्वभाव होजाता है, वह भृत्योंसे काम लेनेरूपी कमसे भी स्वभावसे बचता है। यही उसके आलस्यका स्वरूप है । आलस्य न त्यागना, भृत्योंसे यथोचित काम न लेना, राजाका राज्यव्यवस्थाको अव्यवस्थित कर देने रूपो भयंकर अपराध है। पाठान्तर- न भृत्यान् पोषयति । आलसी राजा मालस्यजन्य दरिद्रतासे भृत्यपोषण करने अर्थात् यथोचित कार्यों के लिए भृत्य नियुक्त करने में असमर्थ होजाता है। विवरण--- उससे उसकी राज्यव्यवस्था पंगु होकर नष्ट भ्रष्ट हो जाती हैं। नीतिज्ञ सोमदेवके शब्दों में " अलसः सर्वकर्मणामनधिकारी ।" माल. सीको किसी भी कर्म का अधिकार नहीं है। अधिक सूत्र- न तीर्थं प्रतिपादयति ॥ आलसी राजा राज्यके कर्मकुशल विचक्षण अनुभवी प्रधानपुरुषोंके अनुभवोंकी उपेक्षा करके उनसे लाभ उठानेसे वंचित होजाता है। विवरण- विद्या अनुभव और धर्मके केन्द्र तथा धर्मज्ञानसंपल लोग • तीर्थ' कहाते हैं । आलसी राजा स्वभावसे मूर्ख तथा अवगुणी होनेके
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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